शुक्रवार, 28 नवंबर 2008

जागो देशवासियों


मुंबई पर हुए आतंकी हमले पर बहुत लिखा जा चुका बहुत सुन लिया और बहुत कह भी लिया मगर जिनकी जान गई जो शहीद हुए उनके लिए कितनों ने बात की हैं..? मीडिया हर पल का सीधा प्रसारण दिखा कर अपने चैनल को तेज सबसे तेज घोषित करने की होड़ में लगा हुआ हैं. राजनीतिक दल हमारे तथाकथित नेता इस समय भी राजनीति करने से नहीं चूकते हैं. एक दूसरे की गलती निकालने एक दूसरे की टाँग खींचने में कोई पीछे नहीं हटना चाहता. सवाल ये हैं कि देश के बारे में कौन सोचेगा..?

हमले में जो शहीद हुए उन्हें शत शत नमन और उन परिवारों को सांत्वना जिन्होंने अपनों को खोया. शायद अब वक्त आ गया हैं जब हमें भारत माँ का ऋण चुकाने को आगे आना होगा. केवल बहस और भाषण से कुछ नहीं होगा समय है उचित रणनीति बनाने का सही कदम उठाने का , कुछ ऐसे ठोस कदम जो आने वाले समय में हमें इतना कमजोर साबित न कर पाए. हमें एकजुट होना होगा और इस आतंक से डटकर मुक़ाबला करना होगा.आपसी झगड़े भूल एकता दिखाने का मिलकर आतंक का सामना करने का वक्त है.

भारत इतना कमजोर कैसे हों सकता हैं कि चंद आतंकवादी पूरे देश को हिला दे ? क्या हमारे देश में इतना सामर्थ्य नहीं की इसका सामना कर पाए ? क्या वीरों की धरती पर वीरों का अकाल हों गया हैं ? हमारी संवेदनाएँ हमारी भावनाएँ कहाँ हैं ?

मीडिया जिसे अपना सही फर्ज निभाना था वो हर खबर को दिखाता रहा और दहशत बढ़ाता रहा. बजाए इसके कि कार्यवाही होने देते व प्रमुख खबरें आम जनता तक पहुँचाई जाती. नेता राजनीति न कर आगे की कार्यवाही पर प्रकाश डालते. कोई भी अपना कार्य ठीक से न कर पाया ?

और हम ? हमने क्या किया ? सुबह की चाय के साथ समाचार पत्र में और न्यूज चैनल में आतंकवादी हमले की खबर की निंदा की ? देश को कोसा ? सुरक्षा व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह उठाए ? थोड़ी देर शहीद हुए लोगों के लिए खेद व्यक्त किया और लग गए अपने काम में ? क्या हमें हक हैं देश के नेता को या अन्य को कोसने का ?

मैं नहीं कहतीं की हमारे नेता या सुरक्षा व्यवस्था में कमी नहीं हैं मैं मानती हूँ कमी हैं मगर जरूरत आज खुद कुछ करने की हैं . मेरे कहने का ये मतलब नहीं की हमें बंदूक लेकर हमला करना हैं. हमें जरूरत है आंतरिक एकता की जहाँ हम कोई जाति कोई मजहब के न होकर भारतवासी हो. अपने आपसी मतभेदों को भुला हम एक हों जाएँ तो ऐसे आतंकवाद का मुक़ाबला कर पाने में समर्थ होंगे. अपने इतिहास से हमें सीख लेना होंगी और आतंक का मुँह तोड़ जवाब देना होंगा. जागो देशवासियों ये आक्रोश जताने का वक्त हैं.


“प्रेरणा शहीदों से हम अगर नहीं लेंगे
आजादी ढलती हुई साँझ बन जाएगी
यदि वीरों की पूजा हम नहीं करेंगे
सच मानो वीरता बाँझ बन जाएगी “

प्रेषक
मोनिका दुबे (भट्ट)

रविवार, 23 नवंबर 2008

कब तक ?


आज फिर कोई वैदेही को देखने आ रहा था. पूरे घर में साज सजावट और मेहमानों के स्वागत की तैयारियाँ हों रही थी. माँ वैदेही को हर बार की तरह शिक्षा दे रहीं थी __ देख बेटी ये रिश्ता बहुत अच्छे घर से आया हैं इस बार तू कोई नया ड्रामा या हंगामा खड़ा मत करना और वैदेही आशंका और डर से मन ही मन चिंतित हों रही थी. ये कोई नई बात नहीं थी इसके पहले भी वैदेही को कई लड़के देख चुके थे व सभी ने उसे पसंद भी किया था मगर हर बार वैदेही ने इनकार कर दिया. दरअसल वैदेही जब मात्र 8 साल की थी तब किसी अपने ही रिश्तेदार ने उसके साथ अनुचित व्यवहार किया था. यह बात वैदेही के अलावा कोई नहीं जानता था क्योंकि रिश्तेदार ने उसे डरा धमकाकर चुप कर दिया था व किसी से कुछ भी न कहने की हिदायत दी थी. जिसे वैदेही आज भी नहीं भुला पाई थी. उसे पुरुष जाति से नफरत हो गई थी यहीं कारण था कि वैदेही अब शादी नहीं करना चाहती थी.

बचपन की वो घटना याद आते ही वैदेही काँप जाती उसे अब किसी पर भरोसा नहीं रहा. पुरुष जाति केवल नारी को अपनी हवस का शिकार बनाते हैं और बाद में फेंक देते हैं बस यहीं विचार वैदेही के मन में घर कर गए थे. उसका आत्मविश्वास खो चुका था. कहीं भी जाने से डरती थी वैदेही. हर किसी को शक़ की निगाह से देखती थी. मगर हर बार शादी के लिए मना करना और माँ का दिल दुखाना अब वैदेही के लिए मुश्किल था. माँ बार बार वैदेही को समझा रही थी. विनती कर रही थी कि इस बार अपनी विधवा माँ का मान रख लेना और लड़के वालों के सामने अच्छी तरह पेश आना और हों सके तो माँ के लिए ही सही इस बार हाँ कह देना. वैदेही अनेक तरह की आशंकाओं से घिरी हुईं लड़के वालों के सामने खड़ी थी. हर बार की तरह इस बार भी लड़के वालों ने वैदेही को देखते ही पसंद कर लिया और हाँ कह दी. वैदेही ने भी माँ की चिंता को कम करने का सोच हाँ कह दिया. शादी की तैयारियाँ शुरु हुई और वो दिन आया जब वैदेही घर से विदा हुई. माँ वैदेही से लिपट कर खूब रोई लेकिन फिर भी उनके चेहरे पर संतोष के भाव थे जो विदाई के दुख से अधिक गहरे थे. ससुराल में सभी ने वैदेही का बहुत अच्छे से स्वागत किया. धन की कोई कमी न थी आलीशान कोठरी और नौकर चाकर थे.

पर वैदेही को ये सब वैभव की चाह न थी वह तो आज तक जिस सोच जिस डर में जी रहीं थी उससे बाहर आना चाहती थी. पर वैदेही को यहाँ भी किस्मत ने दगा दिया उसके पति ने सिर्फ उसकी खूबसूरती देख उससे शादी की थी उसकी भावनाओं के लिए पति के दिल में कोई जगह न थी. वैदेही पहली ही रात अपने पति की जबरदस्ती का शिकार हुई और ये सिलसिला अब आम होता गया.पहले से ही आहत वैदेही मन हि मन घुटने लगी पर अपने दिल की व्यथा किससे कहें. सब कुछ चुपचाप सहन कर वैदेही मात्र एक शरीर बन गई जिसकी आत्मा बहुत पहले मर चुकी थी. वैदेही की व्यथा उसके दिल के एक कोने में बंद होकर रह गई जो कभी बाहर न निकल सकीं.

आज कितनी ही ऐसी वैदेही हैं समाज में जिन्हें किसी अपने ने छला हैं जो किसी अपने की ही हवस का शिकार बनी और जिंदगी भर के लिए मौन हों गई. ऐसी कई वैदेही जो पुरुष वर्ग से घृणा करती हैं जिन्हें अब किसी पर भरोसा नहीं. जिनकी जिंदगी पल भर में तबाह हों गई. आए दिन समाचार पत्रों में बलात्कार दुराचार की खबरें आती हैं. ज्यादातर को अपनों ने ही शिकार बनाया हैं. कही मज़बूरी में काम कर रही नौकरानी के साथ तो कभी मासूम बच्ची के साथ दुराचार किया जाता हैं.

मैं सवाल करती हूँ पुरुष वर्ग से क्या नारी का आत्मसम्मान, भावनाएँ, उसकी इच्छाए कोई मायने नहीं रखती? क्या नारी एक शरीर मात्र हैं? आधुनिकता का चोला पहने लोग भी नारी को वस्तु समझते हैं. कितनी ही नारियों को उनके पति ने ही शिकार बनाया कितनों को देवर, जेठ, या किसी रिश्तेदार ने. ? कहाँ खो गया हैं हमारा जमीर हमारे संस्कार? क्यों हमारी सोच इतनी गंदी हों गई हैं? हमारे देश में नारी को देवी माना गया वहीं दूसरी और इस तरह मात्र दिखावे की वस्तु समझ कर उपयोग किया गया. मात्र कुछ क्षण का आनंद पुरुष को इतना अंधा बना देता हैं कि उसका विवेक ही मर जाता हैं? आखिर क्यों? और कब तक.........????

प्रेषक
मोनिका दुबे (भट्ट)

बुधवार, 12 नवंबर 2008

मूक हैं इसलिए ?


जब भी आकाश में पंछी को देखती हूँ बहुत आनंद मिलता हैं उसकी उड़ान देख कर.खुले मैदान में गाय, बकरी बछड़े जब स्वतंत्रता से विचरते हैं तो खुशी होतीं हैं लगता हैं कि ये जीव हम इंसानो से तो बेहतर हैं प्रकृति के नियमों का पालन करते हैं किसी को बिना वजह तकलीफ नहीं देते. और हम जानवरों के साथ अत्याचार करते हैं सिर्फ इसलिए की वो बोल नहीं पाते.हम लोग इंसान हैं और इंसान ने बहुत तरक्की की हैं. अपनी जाति बिरादरी को बचाने में हम तत्पर हैं लेकिन किसी मूक पशु पक्षी के बारे में क्या हमारी सोच इतनी विस्तृत हैं?

मुझे एक घटना याद आती हैं. भीषण गर्मी थी और दोपहर का समय था मैं घर पर थी. अचानक बाहर से आवाज आई- " नांदिया बाबा के लिए कुछ दे दो". मैने देखा बाहर एक युवक एक छोटे बछड़े को लेकर खड़ा हैं. गर्मी की वजह से मैंने दरवाजे से ही एक रूपए का सिक्का उसकी और उछाल दिया. पास के घर से पड़ोसन एक रोटी लेकर आई तो मैंने देखा ,बछड़ा रोटी की तरफ लपका लेकिन उस युवक ने रोटी लेकर तेजी से झोले में डाल ली. जिज्ञासावश में बछड़े के पास गई तो देखा उसकी आँख में एक फूला हुआ सा कुछ था जिसके कारण वह युवक उसे नंदिया बाबा बता रहा था.

अत्यंत मरियल बछड़े की एक एक हड्डी साफ नजर आ रही थी. वह दीन आँखों से मुझे देख रहा था जैसे कह रहा हो मुझे इस कसाई से बचा लो. वह युवक उसके गले की रस्सी खींचता हुआ ले जा रहा था. बछड़ा एक कदम भी चलने को तैयार नहीं था पर रस्सी के गले पर पड़ते दबाव के कारण घिसियाता हुआ पीछे पीछे चला जा रहा था. मै उस मूक निरीह और मासूम बछड़े को जाते देखती रहीं और कुछ नहीं कर पाई.

जो लोग इनके नाम से अपना पेट भरते हैं वे इन्हें भरपेट भोजन भी नहीं कराते, यह देख मन विषाद से भर गया. उस बछड़े की दयनीय आँखें आज भी मेरा पीछा करती हैं और मन में टीस उठती हैं. क्यों हम मूक पशु पक्षियों को नहीं समझ पाते? क्यों उनके साथ बुरा सलूक किया जाता हैं?
कम से कम ये ईमानदार तो हैं इनकी दुनिया में सच्चाई और वफादारी का स्थान हैं. जहाँ झूठ,फरेब,ईर्ष्या नहीं होता सिर्फ प्यार होता हैं. ऐसी दुनिया से तो हमे प्रेरणा लेना चाहिए. उनके साथ बुरा सलूक करने के बजाए उन्हें भी प्रेम दीजिए. जो मूक हैं मासूम हैं उन्हें किस बात की सजा? कम से कम प्रेम पाने का हक सभी को हैं चाहे वो जानवर हों या इंसान. केवल पढ़कर या टिप्पणी देकर अपने कर्तव्यों की इतीश्री नहीं समझे बल्कि इस पर चिंतन करें और हों सकें तो पालन भी. कभी मूक दर्शक न बने बल्कि अन्याय व अत्याचार को रोकने का प्रयास करें. जो मैं अब करने का प्रण ले चुकी हूँ.


प्रेषक
मोनिका भट्ट (दुबे)

गुरुवार, 30 अक्तूबर 2008

सपनों का भारत



हर वर्ष दीपावली आती हैं और लाखों करोड़ों रुपए पटाखे बन धुएँ में बदल जाते हैं. हर वर्ष यहीं प्रश्न मन में उठता हैं कि क्या यहीं सही तरीका हैं त्योहार मनाने का..?
देश में जहाँ आर्थिक रूप से संपन्न लोग हैं वहीं एक वो तबका भी हैं जिसे दो वक्त की रोटी नसीब नही होतीं. कई बच्चे आज भी भूख से तड़पते हुए मौत की नींद सो जाते हैं.

कहीं बाढ़ तो कहीं सूखे की मार से परेशान चेहरे. कहीं भूकंप की चपेट में आए परिवार के अनाथ बच्चे. भूख से बिलखता मासूम और उसकी बेबस माँ. मज़बूर पिता जो गरीबी के कारण अपने बच्चों को नए कपड़े मिठाई नहीं दिला सकता. ऐसे हजारों चेहरे जिनके लिए दिवाली खुशियाँ नहीं लाती बल्कि उनके बच्चे ललचाई नजरों से उच्च वर्ग को दिवाली मनाते देखते हैं और आस लगाते हैं कि एक दिन उनकी किस्मत का तारा भी चमकेगा.

हर साल में ये सवाल अपने आप से करती हूँ. जब लोगो को हजारों रुपयों को जलाते हुए देखती हूँ. इस देश में एक वर्ग ऐसा हैं जो एक वक्त रोटी खाता है और दूसरे वक्त पानी से गुजारा करता है. वहीं दूसरी तरफ उच्च वर्ग कई तरह के मिष्ठान खाता हैं और बचा हुआ फेंक देता हैं.

मैं ये सोचती हूँ कि जितने रुपयों के हम पटाखे जलाते हैं वहीं रुपयों से यदि किसी जरूरत मंद की मदद की जाएँ तो सही मायने में त्योहार सार्थक होंगा. किसी गरीब की मदद कर के जो सुकून मिलेगा वो इन पटाखे से लाख गुना बेहतर हैं. मैं ये नहीं कहतीं की त्योहार नहीं मनाए, जरूर मनाए खुशियाँ तो बाँटने से बढ़ती हैं लेकिन उन्हीं खुशियों में कुछ ऐसे लोगों को भी शामिल करें जिनके लिए पेट भर भोजन सपने की तरह हैं. ऐसे चेहरों पर मुस्कान लाइए आपका त्योहार अनोखा होंगा ये मेरा दावा हैं.

मैं ये जानती हूँ कि केवल लिख देने या कह देने से कुछ बदलता नहीं बल्कि प्रयास करने से बदलाव आते हैं यह केवल अपनी वाहवाही पाने को लिखा गया लेख नहीं बल्कि मेरा प्रथम प्रयास हैं बदलाव की दिशा में.
मैं चाहती हूँ कि हम बदले हमारी सोच बदले हमारा तरीका बदलें ताकि देश में नई रोशनी नई किरण फैले और एक नई सुबह हो जिसमें हर जगह सुख शांति प्यार हों. जहाँ कोई भूख से दम न तोड़े.कोई लाचारी न हों. ऐसा भारत जहाँ केवल आत्मीयता और प्रेम हों भेदभाव न हों हिंसा न हों.

मुझे यकीन हैं कि आप लोग मेरा सपना साकार करने में मेरी मदद करेंगे और अब से हर वर्ष दिवाली नए तरीके से मनाएँगे और केवल दिवाली ही क्यों किसी को खुशियाँ देने के लिए हर दिन महत्वपूर्ण हैं बस हम फिजूल खर्च न कर किसी नेक कार्य में पूँजी लगाए. उम्मीद करती हूँ मेरा लिखा सार्थक होंगा.

“ न कहीं दंगा न कहीं फसाद होंगा
हिंदू, मुसलमान हर जगह साथ साथ होगा
सभी के बाग में मोहब्बत के फुल खिलते हों
हाँ मेरे सपनों का ऐसा भारत होगा”

प्रेषक
मोनिका दुबे (भट्ट)

शनिवार, 25 अक्तूबर 2008

पापा की सीख


बचपन से बेटी अपने पापा के बहुत नजदीक होती है. पापा के दिल का टुकड़ा. जरा सी खरोंच भी आ जाएँ तो पापा अपनी बिटिया की तकलीफ दूर करने को तत्पर रहते है.

मै भी वैसे ही अपने पापा के बहुत नजदीक हूँ. मेरे पापा मेरे आदर्श है. बचपन से ही मेरी दुनिया अपने पापा से शुरु होती है.मेरे हर हुनर को पापा ने पहचान दी. समय बीतता रहा और कब मेरी उम्र विवाह योग्य हो गई मैं नही जानती.लेकिन पापा के चेहरे पर कभी कभी वो चिंता की लकीरें दिखाई देती थी जो एक पिता को अपनी बेटी के विवाह के लिए होती है.

और एक दिन वो घड़ी भी आई जो एक बेटी और पिता के लिए सबसे मुश्किल घड़ी होती है. वो घड़ी थी मेरी विदाई की. मुझे माता पिता ने बचपन से अच्छे संस्कार देने का प्रयास किया था. पढ़ाई के कारण ज्यादातर समय मैं अपने घर से दूर रही हूँ इसलिए ग्रहकार्य कर पाने मे निपुण नही थी.

पापा इस बात को अच्छी तरह से जानते थे. पापा मेरे मार्गदर्शक और मेरे पथ प्रदर्शक भी रहे हैं. इसलिए मेरी समस्या को समझते हुए उन्होंने मेरे लिए एक पत्र लिखा और मेरी बिदाई के समय वह पत्र मेरे हाथ मे देकर नम आँखों से मुझे बोले मैंने तुम्हारे लिए कुछ लिखा है जो शायद तुम्हारे लिए उपयोगी साबित होंगा इसे बाद मे पढ़ लेना.


वह पत्र मेरे लिए किसी अमृत वचन से कम नहीं है. समय समय पर उस पत्र ने मेरा बहुत साथ दिया. मैं उस पत्र को आप सभी के साथ शेयर करना चाहती हूँ ताकि जैसे मुझे उस पत्र ने मार्गदर्शित किया कुछ और बेटियों को भी मार्गदर्शित कर सकें.

प्रिय मोना,

आज पहली बार तुम्हारे पापा को तुमसे कुछ कहने के लिए कलम का सहारा लेना पड़ रहा है. लेकिन मुझमें इतनी हिम्मत नहीं कि ये सब मैं तुम्हें उस क्षण बता सकूँ जब तुम अपने पापा को छोड़ नए दुनिया मे कदम रख रही होंगी.
बिटिया जब आपका विवाह होता हैं तो आप उस पूरे परिवार से जुड़ जाते हो. हमेशा अपने परिवार का मान सम्मान बनाए रखना. मैने और तुम्हारी मम्मी ने हमेशा तुम्हें अपने से बड़े का आदर करना सिखाया है इसे भूलना नही.
मै जानता हूँ कि तुम्हें घर के कार्य ठीक से नहीं आते लेकिन धैर्य व लगन से यदि कार्य करने का प्रयास करोंगी तो निश्चित रूप से सभी कार्य कर पाओंगी. तुम्हें कुछ जरूरी बातें बता रहा हूँ जो तुम्हें मदद करेंगी.

प्रातः जल्दी उठने की आदत डाले. इससे कार्य करने मे आसानी होती है साथ ही शरीर भी स्वस्थ रहता है.

घर के सभी बड़े लोगो को सम्मान दे व कोई भी कार्य करने से पूर्व उनकी अनुमति ले.

भोजन मन लगाकर बनाने से उसमें स्वाद आता है कभी भी बेमन या घबराकर भोजन नही बनाओ बल्कि धैर्य से काम लो.

यदि तुम्हें कोई कार्य नही आता तो अपने से बड़े से उसके बारे मे जानकारी लो.और उसे करने की कोशिश करो.

गुस्सा आदमी का सबसे बड़ा दुश्मन है. हमेशा ठंडे दिमाग से काम लो. जल्दबाजी मे कोई कार्य न करो.

गलतियाँ सभी से होतीं है. कभी भी कोई गलती होने पर तुरंत उसे स्वीकार करो. क्षमा माँगने से कभी परहेज़ न करो.

किसी के भी बारे मे कोई भी राय बनाने के पहले स्वयं उसे जाने,परखे तभी कोई राय कायम करे.सुनी हुई बातों पर भरोसा करने के बजाए स्वविवेक से निर्णय ले.

सास ससुर की सेवा करें. उन्हें दिल से सम्मान दे. उनकी बातों को नजर अंदाज न करे. न ही उनकी किसी बात को दिल से लगाए.

हमेशा अपने पापा के घर से उस घर की तुलना न करो. न ही बखान करो. वहाँ के नियम वहाँ के रिवाज अपनाने का प्रयास करो.

किसी भी दोस्त या रिश्तेदार को घर बुलाने के पहले घर के बड़े या पति की आज्ञा ले.

विनम्रता धारण करो. संयम से काम लो.कोई भी बिगड़ी बात बनाने का प्रयास करो बिगाड़ने का नही.

कोई भी कार्य समय पर पूरा करे. समय का महत्व पहचानो.हर कार्य के लिए निश्चित समय निर्धारित करो व उसे पूर्ण करो.

घर के सभी कार्य मे हर सदस्य की मदद करें. जो कार्य न आए उन्हें सीखे.


ऐसी और भी कई छोटी छोटी बातें है जिनका यदी ध्यान रखा जाएँ तो गृहस्थी अच्छी तरह से चलती है. बिटिया अपनी जिम्मेदारियो से मुँह नही फेरना बल्कि उन्हें अच्छी तरह से निभाना. मुझे तुम पर पूरा भरोसा है. मै जानता हूँ कि तुम अपने ससुराल मे भी अपने मम्मी पापा का नाम ऊँचा रखोंगी व हमे कभी तुम्हारी शिकायत नही आएँगी. तुम सदा खुश रहो और अपनी जिम्मेदारियाँ ठीक से निभाओ यही आशीर्वाद देता हूँ.

तुम्हारा पापा
राजेंद्र दुबे


दोस्तों , आज मै अपने ससुराल मे सबकी चहेती हूँ. ससुर जी मेरी तारीफ करते नही थकते. ये सब पापा की सीख का परिणाम है. उम्मीद करती हूँ कि आपको भी मेरे पापा की सीख मदद करेंगी. और आप भी अपने गृहस्थ जीवन मे सबके चहेते बने रहेंगे.

प्रेषक
मोनिका दुबे (भट्ट)

गुरुवार, 23 अक्तूबर 2008

अधूरी जिंदगी


मै बहुत खुश थी कि इक नन्हा फरिश्ता मेरी दुनिया मे आने वाला है.उसकी कल्पनाओं से मेरे कई ख्वाब सजने लगे थे. नन्हा सा फरिश्ता जब मुझे माँ कहेगा तो मेरा रोम रोम पुलकित हो जाएगा.जब वो चलेगा तो पुरा घर खुशियों से भर जाएगा.

मुझे नही पता कि तुम कैसे दिखाई देते हों.मेरे लिए तुम मेरी जिंदगी हो. मेरा हिस्सा हो. जब तुम हंसोंगे तो तुम्हारी हँसी पर अपना सब कुछ वार दूँगी. तुम्हें कभी आँसू नही बहाने दूँगी. तुम्हारे बदले मैं कुछ नही माँगती.तुम्हारा बेसब्री से इंतजार कर रही थी मै.

तुम मुझे नया जीवन दोगे. नई उमंग नया उत्साह दोंगे.तुम मेरी परछाई हो और तुम मुझसे कभी दूर नही जाओगे. मै तो यहीं ख्वाब देख रही थी . मुझे नही पता था कि परछाई भी कभी कभी अपना साथ छोड़ देती है और तुम तो मेरी कल्पना हि हो. मैं नही आना चाहती थी उस दुनिया के बाहर.

अचानक मेरा ख्वाब टूट गया. मुझे लगा कि तुम कही जा रहे हो बिना मुझे कुछ कहें. मुझे एहसास हुआ कि तुम्हारा नन्हा हाथ मेरे हाथों से छूट रहा है. मै तुम्हें रोकना चाहती हूँ पर रोक नही पाती. तुम्हें एक बार छू कर देखना चाहती थी मैं. तुम्हें जी भर प्यार करना चाहती थी मै.

मुझे लगा कि तुम मुझसे कुछ कह रहे हो.पर मै तुम्हारी आवाज नही सुन पा रही हूँ. मुझे लगा कि तुमने मुझे माँ कहा और तुम दूर बहुत दूर चले गए. मुझसे बहुत दूर. मै बहुत छतपटाई बहुत तड़पी मगर तुम्हें रोक न सकीं. तुम खो गए न जाने कौन सी दुनिया मे. और मुझे दे गए अधूरी जिंदगी. मेरी दुनिया सुनी हो गई.

सोचती हूँ तुम क्यों आए थे मेरे ख्वाबों में जब तुम्हें एक दिन चले ही जाना था. शायद मुझे जिंदगी का सबक सिखाने कि जो आता है वो जाता भी है. फिर भी मुझे तुम्हारा आज भी इंतजार हैं कभी तुम आओगे और मुझे माँ कहोंगे. मेरी अधूरी जिंदगी पूरी करोगे और मेरे जीवन का एक दाग हमेशा को मिटा दोंगे.

प्रेषक
मोनिका दुबे(भट्ट)

सोमवार, 13 अक्तूबर 2008

नारी ही नारी की दुश्मन


सामने की हवेली मे हलचल थी किसी के रोने की आवाज आ रही थी.आठ दस लोग जमा थे. मैने जिज्ञासा वश पता किया तो मालूम हुआ कि सेठ हीरालाल की बहु नही रही. घरवालों ने बताया कि उसने आत्महत्या कर ली. मुझे यकीन नही हुआ सेठ की बहू मानसी इसी शहर के शिक्षक ज्ञान प्रकाश की छोटी लड़की थी .हम उसे बचपन से जानते थे बेहद खूबसूरत, प्रत्येक काम मे पारंगत,मृदुभाषी मानसी पूरे मोहल्ले की चहेती थी.

सेठ हीरालाल के पुत्र विकास की कॉलेज मे मानसी से मित्रता हुई जो बाद मे प्रेम और शादी मे तबदील हो गई. सेठ हीरालाल के परिवार ने इस शादी का घोर विरोध किया कि एक मामूली शिक्षक की लड़की हमारे परिवार की बहू नही बन सकती. पर पुत्र मोह के कारण सेठ को हार मानना पड़ी व शादी संपन्न हुई.


उसके बाद से मानसी की गरीबी को लेकर उसके खाली हाथ ससुराल मे आने से उस पर फिकरे कसे जाते थे. प्रताड़ित किया जाता था. शायद यही वजह उसकी आत्माहत्या की थी. मानसी के पिता ज्ञानप्रकाश को एक ही शहर मे होने के बावजूद खबर तक नही दी गई. और उसका दाह संस्कार कर दिया गया.ग्यान प्रकाश ने पुलिस थाने से लेकर पुलिस अधीक्षक तक गुहार लगाई लेकिन सेठ हीरालाल के सिक्कों की खन खन मे उनकी आवाज दब गई. और मामला पूरी तरह समाप्त हो गया.

आज देश में हजारों मानसी दहेज और गरीबी का शिकार हो रही हैं. और ये सबसे दुख की बात है कि औरत की दुश्मन औरत ही हैं.जब एक लड़की दुलहन बन ससुराल आती हैं तो उसके मन के कई ख्वाब पल रहे होते हैं. तब समाज और मोहल्ले की औरतें एकजुट हो कर उसके गले का हार, नाक, कान्, के आभूषण, उसकी चूड़ी उसकी पायल देखते हैं.उसके कपड़े कितने भारी है इस पर निगाह होती हैं. इन चीजों मे कमी होने पर उसे पता नही क्या क्या संज्ञाए दी जाती है.

औरत बेटी के लिए चाहती है की वो योग्य हो समझदार हो लेकिन बहु के लिये उसकी सोच विपरीत होती हैं बहू उनसे कम समझदार हो हमेशा उनकी मातहत बनी रहे अक्ल मे उनसे कमजोर रहें माल उनसे ज्यादा लाए. यही महिलाओं की मानसिकता की वजह से औरत औरत की दुश्मन बन जाती है.


यह सच हैं कि आज महिलाएँ देश के हर क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही है. किरण बेदी,सानिया मिर्जा, और देश के राष्ट्रपति पद तक पहुँच गई है . लेकिन ऐसी महिलाओं की संख्या उँगलियों पर गिनी जा सकती हैं और देश कि 70% महिलाएँ आज भी पैरों की ज़ुति है.

भारत गाँवों का देश है और गाँवों मे महिला शिक्षित नही हैं. वे पुरुषों के अधीन है, उनके जुल्म, उन पर हो रही यातना की खबर शहरों तक आ ही नही पाती. वहीं शहरों मे वो तबका जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं, उनकी बेटियाँ भी अपनी मनपसंद जगह शादी नहीं कर पाती क्योकी उनका परिवार सक्षम नहीं होता.

आजादी के 61 सालों बाद भी नारी कि ऐसी स्थिति के लिए हमारा समाज ही जिम्मेदार हैं. नारी ही नारी की दुश्मन बन बैठी है. महिलाएँ ही महिलाओं को समाज मे वो विशेष स्थान दिला सकती हैं जिसकी वो हकदार है. अतः महिलाओं को ही आगे आना होंगा तभी समस्या का समाधान संभव हैं ,अब भी समय है जाग जाएँ और अपना वजूद बनाए रखने को कदम बढ़ाएँ.शायद ये पंक्तियाँ आपका हौसला बढ़ाएँ

"जिस क्षण न रुकती हो नयन सावन झड़ी
उस क्षण हँसी ले लो किसी तसवीर से
जब हाथ से टूटे न अपनी हथकड़ी
तो माँग लो ताकत स्वयं जंजीर से"

प्रेषक -
मोनिका दुबे (भट्ट)

जागो बेटों जागो


अब उनकी आँखों की रोशनी कम हो गई है. चेहरे पर झुर्रियों हो गई हैं बालों मे सफेदी ने घर कर लिया है.कमर झुक गई हैं. शरीर कमजोर हो गया है. मगर आज भी काँपते हाथों से अपने पोते- पोती की फरमाइश पर वो हर काम करती है. उन पर जान छिड़कती है. अपने पोपले मुँह से जब हँसती है तो लगता है कि सारी दुनिया मे सबसे खूबसूरत वही हैं.

सच कितना प्यारा रूप है उनका वात्सल्य और प्रेम से भरपूर. अपनी पुरी जिंदगी अपने बच्चों के लिये गुजार दी. पति के स्वर्गवासी होने पर पूरे घर की जिम्मेदारि निभाई.जब भी बच्चों को उनकी जरूरत थी वो हमेशा उनके साथ थी. कभी बच्चों को अकेलापन महसूस नही होने दिया.बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाई. विवाह योग्य होने पर उनकी गृहस्थी बसाई और बच्चों की खुशी देखकर ही खुश होती रहीं.

आज उन्हें बच्चों के सहारे की जरूरत हैं.आज उन आँखों को एक नए चश्मे की जरूरत है.उनकी कमर दर्द करती है पर कोई सहलाने वाला नही होता. उनकों खाना खानें मे तकलीफ होती है क्योकी सारे दाँत गिर गए है पर बेटे को इतनी फुरसत कहाँ कि माँ की बत्तीसी बनवा दे.

उनसे घर के काम अब नही होते पर बेटा विदेश में है घर आने का समय नहीं. वो अकेली हैं बीमार हैं पर अपने बेटे की चिंता उन्हें अपने से ज्यादा है. अपनी धुँधली आँखों से शाम को दरवाजे को तकती है की शायद बेटा आयेगा अपनी माँ कि खबर लेने. हर फोन की घंटी सुन वो भागी चली आती हैं शायद बेटे को माँ की तकलीफ का एहसास है उसने फोन किया होगा.
मगर बेटा मगरूर हैं अपनी दुनिया मे खोया हुआ हैं. उसे माँ की तकलीफें उनका बहाना लगती है उसे वापिस बुलाने का. माँ का दर्द पराया लगता है. माँ के विचार अब आधुनिक बेटे को दकियानूसी लगते हैं. रहन सहन मिडिल क्लास लगता हैं.

जागो बेटों जागो तुम्हारी माँ तुम्हें पुकार रही हैं. अब भी समय हैं देर नही हुई. माँ का सहारा बनो उन्हें धिक्कारो मत. उनके बुढ़ापे में उनका साथ दो.उनकी दवाई का ध्यान रखो. उनका चश्मा बनवा दो. उनके लिये शॉल ले लो उन्हें ठंड लगती है. जरा देखो उनकी चप्पल कितनी घिस गई है एक नई चप्पल ले लो. उनकी बातें सुनने का भी समय निकालो. उनकी तकलीफ समझो. उनके आँसू बहने से रोक लो. उन्हें अकेले नही छोड़ो. वो माँ है हमेशा तुम्हें आशीष हि देंगी. तुम्हारी हर गलती को माफ कर देगी.

ऐसा न हों कि बहुत देर हो जाएँ. उनके जाने के बाद सबसे ज्यादा तुम हि अकेले हो जाओगे.तब बहुत सी बातें होंगी जो तुम्हें उनसे कहनी होंगी पर तब वो तुम्हारे पास नही होंगी. उनके जीते जी उन्हें खुशी दो उनका दिल मत दुखाओ. अब भी समय है जाग जाओ.अपने माँ बाप को बुढ़ापे मे अकेले न छोड़ो.

इसे पढ़कर एक भी बेटे का मन यदि मैं बदल पाई तो समझुंगी मेरा लिखना अपने मकसद मे कामयाब रहा.

प्रेषक
मोनिका दुबे (भट्ट)

अनुत्तरित प्रश्न


अनेक प्रश्न ऐसे है जो कभी दोहराए नही जाते
बहुत उत्तर भी ऐसे हैं जो कभी बतलाए नही जाते

इसी कारण अभावो का सदा स्वागत किया मैंने
कि घर आए मेहमान कभी लौटाए नही जाते

हुआ क्या आँख से आँसू अगर बाहर नही निकले
बहुत से गीत भी ऐसे है जो कभी गाए नही जाते

बनाना चाहती हूँ स्वर्ग तक सोपान सपनों का
मगर चादर से ज्यादा पाँव फैलाए नही जाते

प्रेषक
मोनिका दुबे (भट्ट)

बनिए महफिल की शान


महफिल पर छा जाने की खूबी मंच को जीत लेने की खूबी क्या आपमें है? इसके लिए आपमें मंच पर बोलने की क्षमता होना चाहिए. ज्यादातर लोग स्टेज पर बोलने से घबराते हैं. ये खूबी हर किसी मे नही होती. लेकिन यदि ये खूबी आपमें हैं तो आप पूरी महफिल मे अपना रंग जमा सकते हैं. अच्छा वक्ता बनने के लिए सबसे पहले जरूरी है अच्छा श्रोता होना. निम्न कुछ बातें हैं जिन पर अमल कर आप भी बन सकते हैं मंजे हुए वक्ता :-

1. सबसे पहले अपने सामान्य ज्ञान यानि जनरल नॉलेज को बढ़ाएँ. इसके लिए आप न्यूज पेपर पढ़े,न्युज चैनल देखें व अपने आँख व कान खुले रखे. आपको पता होना चाहिए कि देश व दुनिया मे क्या घटित हो रहा है.


2. दूसरा आपकी भाषा पर अच्छी पकड़ होना आवश्यक है. आपका उच्चारण साफ व सही होना चाहिए.साथ ही अच्छे शब्दों का प्रयोग करना भी प्रभावकारी होता हैं.

3. इसके अलावा आपको जिस भी विषय पर बोलना है उसकी पूर्ण जानकारी होना चाहिए. आपको उस विषय के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पहलुओं की जानकारी होना भी आवश्यक है ताकि आप हर तरह से बोल पाने मे सक्षम हों.


4. आपका बोलने का ढंग व आपके हाव भाव प्रभाव शाली होना चाहिए. क्योकी यदि आपका बोलने का ढंग असरकारक नही हैं तो आपकी जानकारी कितनी भी हो आप सही तरीके से अपनी बात नही पहुँचा पायेंगे.



5. जब भी आपको मंच पर बोलना हो घर पर आईने के सामने खड़े होकर बोलने का अभ्यास करें. इससे आपको आपकी कमजोरियों का पता चलेगा व आत्माविश्वास भी आएगा.


6. विषय को रटना नही चाहिए. ऐसा करने से आपकी प्रस्तुति खराब हो सकती हैं. हमेशा विषय को समझकर बोले.


7. यदि आपको बोलने के लिए समय सीमा दी गई है तो उसका विशेष ध्यान रखें. क्योकी समय सीमा मे बोलने के लिए विषय को क्रम से रखना आवश्यक है. याद रखे सबसे महत्वपूर्ण बात पहले रखी जाएँ.


8. आपका पहनावा भी ठीक होना चाहिए. बहुत भड़काऊ वस्त्र पहनने से बचना चाहिए. साधारण वस्त्र पहने जो समय व परिस्थितियों के अनुरूप हो.


9. बोलते समय दर्शकों की ओर देखें नजरें नीची करके या घबराकर कही गई बात का असर नही होता.

10. कुल मिलकर आपमें भरपूर आत्मविश्वास होना चाहिए.


11. तो इन बातों पर अमल कीजिए और बन जाइए महफिल की शान. आप भी सबके चहेते होंगे और आपकी बोली के लोग कायल होंगे. यकीन नहीं तो आजमा कर देख लीजिए.मेरा विश्वास है कि आपको निराशा हाथ नही लगेंगी.

प्रेषक
मोनिका दुबे( भट्ट)

बुधवार, 24 सितंबर 2008

बनिए उनका सहारा



बुजुर्गों को चाहिए अपनापन और प्यार। उनके साथ बात करने से कतराए बल्कि उनका अकेलापन बाँटने का प्रयत्न करे। बुजुर्गो के साथ बातचीत कराने के लिए धैर्य व समय की जरूरत होती है. यहीं वे लोग है जो हमारा आधार हमारी नीव होते है. आज का युवा वर्ग बुजुर्गों का उतना सम्मान नहीं करा पाते जितना वे चाहते है. हमें अपने आधार का हमेशा शुक्रिया अदा करना चाहिये उन्हें सही मान व सम्मान देना चाहिये.

बड़ती उम्र न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक क्षमता को भी प्रभावित करती है। यही कारण है की बुजुर्गों को अपनी बातों के साथ तारतम्य बैठाने में कठिनाई होती है. लेकिन इस वजह से रिश्तों में दूरी नही आना चाहिये. रिश्तों को ठोस बनाए रखने के लिए बातचीत ही एक मात्र उपाय है. अन्य लोगों द्वारा बुजुर्गों को न समझ पाना ही उन्हें एकांत प्रिय बना देता है.

हमें चाहिए की हम उनके दिल की सुने, उन्हें समझे ताकि उन्हें ये एहसास हों की उनकी भी इस दुनिया में एक पहचान हैं वजूद है। हमें बुजुर्गों के सामने एक श्रोता बनकर पेश होना चाहिए. उनकी बात बहुत ध्यान से सुनना चाहिये. असरकारक संवाद रिश्तों की गरमाहट बनाए रखने में महत्वपूर्ण होते है. उन्हें हमे ये एहसास दिलाना चाहिए कि हम उनसे कितना प्यार करते है और उनकी हमें हमेशा जरूरत है. बुजुर्गों से उनकी यादों व किस्सो के बारे में पूछने से उन्हें ये यकीन होंगा की आप उन्हें अपना मानते हैं और उनसे बात करना चाहते हैं.

किसी गंभीर विषयों की बजाए सामान्य विषयों पर बात करना चाहिए। कोशिश करें की ऐसे विषयों पर बात हो जिसमें उनकी रुचि हो. बुजुर्गों से बच्चों की तरह नहीं बात करना चाहिए. अपनी तमाम जिम्मेदारियो को निभा कर जब व्यक्ति उम्र के इस पड़ाव पर आता हैं तो उसे सहारे की जरूरत होती हैं. निश्चित रुप से विचारों की भिन्नता हों सकती है टकराव भी हों सकता है लेकिन इसका मतलब ये कदापि नहीं कि हम उन्हें नजर अंदाज कर दे.

याद रखें ये वही बुजुर्ग है जिन्होंने हाथ पकड़ कर आपको आपकी मंजिल तक पहुचाया था। आज उन्हें आपकी जरूरत है. वो आँखें जिनकी रोशनी अब कम हों गई हैं वो शरीर जो अब लाठी को सहारा बनाकर चलता है अब भी आपके स्नेह और अपनत्व को पाने के लिए लालायित है. ऐसे में कहीं आप उनसे मुँह तो नहीं फेर रहे है.

यदि आप ऐसा कर रहे है तो अपनी जिंदगी के पन्नों को जरा गौर से देखिए आप पाएँगे की आपकी हर खुशी में वो आपके साथ थे हर दुख में आपका सहारा थे आज वो आपकी और हाथ बड़ा रहे है सोचिए मत उठिए और हाथ आगे कीजिए. और फिर देखिए आप सारी दुनिया में सबसे ज्यादा खुशी के धनी होंगे.


रिश्ते खट्टे- मीठे


रिश्ते जीवन मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है.वर्तमान परिदृश्य में रिश्तों मे कड़वाहट घुलती जा रही है. कुछ रिश्ते इतने नाजुक होते है कि उन्हे विशेष तवज्जो की जरूरत होती है.कई बार अनजाने ही हमसे ऐसी गलतियाँ हो जाती है कि रिश्ते या संबंध टूट जाते है.

रिश्ता चाहे कोई भी हो भाई- बहन, माता-पिता,चाचा,मामा,मित्र या पति-पत्नि हर रिश्ते की अपनी एक गरिमा होती है साथ ही माँग भी. जब कोई प्यारा सा रिश्ता हमारी अनजानी गलतियों की वजह से टूट जाता है तब हमे अहसास होता है कि शायद कही कोइ कमी रह गयी थी

रिश्ते को बनाए रखने के लिए इस बात को समझना जरुरी है कि किस रिश्ते को हम किस नजरिए से देखते है.यहाँ यह ध्यान रखना आवश्यक है कि हर रिश्ते की प्राथमिकता व महत्व अलग अलग होते है. अतः प्रत्येक रिश्ते का महत्व समझकर उसे उसी श्रेणी मे रखा जाना आवश्यक है.

जीवन मे माता-पिता से बड़ा कोई रिश्ता नही होता. कई बार युवक विवाह होने के बाद अपनी ही दुनिया मे खो जाते है जहाँ माता-पिता का कोई स्थान नही होता.जो गलत है युवको को ये बात हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि हमारे माँ- बाप के प्रति भी कुछ कर्तव्य है जो हमे निभाने है. वही दूसरी ओर परिस्थितिया इसके विपरित भी होती है कुछ युवक माता-पिता कि सेवा करते हुये पत्नी की ओर उदासीन हो जाते है.यह भी गलत है.आवश्यकता है संतुलन की सही तालमेल की.

अपने जीवन मे आपके लिए सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण कौन है यह आप निर्धारित किजिए किंतु अन्य रिश्तों को भी आवश्यकता अनुरूप समय दे सम्मान दे.ताकि हर रिश्ते कि गरिमा बनी रहे.

निम्न कुछ बातो पर अमल किजिए और फिर देखिए कि आपके रिश्ते कितने मधुर बन जायेंगे :

1. छोटी- छोटी बातों को नजरअंदाज करना सिखिए.

2. क्षमा करना अपने व्यवहार मे शामिल किजिए.

3. अपने से बुजुर्ग से हमेशा आदर से बात किजिए. वो क्या कहना चाह रहे है पहले वो सुनिए बाद मे अपनी बात रखिए.

4. हमेशा आलोचक बनने की बजाए सामने वाले की अच्छाई भी देखे.

5. व्यवहार मे विनम्रता शामिल किजिए.

6. समय कभी लौट कर नही आता अतः समय रहते आपके अपनो को खुशी देने का कोई अवसर मत छोड़िए.

7. रिश्तो मे हमेशा तालमेल बनाकर रखे.दो रिश्तों के बीच हमेशा सेतु बनने का प्रयास करे उन्हे बिगाड़ने का नही.

8. रिश्तो मे संवाद बहुत आवश्यक है अतः हमेशा अपने करीबीयो से बातचीत बनाए रखे.

प्रेषक

मोनिका दुबे

स्वतंत्रता दिवस


इस बार उत्तर भारत मे भीषण सूखा पड़ा था.लोग पानी-पानी के लिये तरस रहे थे.आदिवासी बहुल इलाके मे भुखमरी का आलम था. लोग काम की तलाश मे पलायन कर रहे थे.मूक पशु पानी व चारे के बिना दम तोड़ रहे थे.पंछी कही और बसेरा करने की तलाश मे उड़ गये थे. बेजान सूखे पेड़,खाली सपाट खेत पथरीले काले पत्थर वातावरण को डरावना बना रहे थे. मरे जानवरों को खाते कुत्ते और गिद्धो के झुंड यहाँ वहाँ मँडरा रहे थे.आदिवासी क्षेत्र का कुशलपुर गाँव सूखे की चपेट मे ज्यादा था. गाँव के अधिकांश लोग रोजी रोटी की जुगाड़ में गुजरात चले गये थे.प्रत्येक घर मे कुछ बच्चे और वृद्ध थे जो घर से जाने मे असमर्थ थे. शाम के लगभग 4 बजे रत्ना झोपड़ी के बाहर बैठकर सूप में धान साफ कर रही थी पास ही उसका 2 माह का बच्चा खाट पर सोया हुआ था.कल ही उसका पति कालू गुजरात से लगभग 6 माह बाद लौटा था,रत्ना को इसलिए नही ले गया था क्योकी वह गर्भवती थी.

वहाँ से मज़दूरी के पैसे इकट्ठे कर अपने बच्चो को देखने और 2-4 दिन रुककर जो साहूकार का उधार था उसे जमा कर रत्ना को अपने साथ ले जाने की कालू की योजना थी. अनायास मोटर साइकिल की आवाज सुनकर रत्ना चौंक पड़ी, उसने देखा की दो पुलिस वाले मोटर साइकिल खड़ी कर उसकी ओर बड़ रहे है. एक बड़ी बड़ी मूँछों वाला मोटा सा शायद हवलदार था और साथ मे एक सिपाही. सिपाही ने पास आकर कहा- क्यो री तेरा आदमी कहाँ है?औरत ने कहा साब वो तो खेत तरफ गया है. सिपाही बोला अरे बैठी क्या है, खड़ी हो, साब से बात कर, बता कल तेरा आदमी कहाँ था ? रत्ना बोली साब वो तो काम पर गुजरात गया था कल ही आया है और अभी खेत देखने और गाँव वालो से मिलने गया है. हवलदार ने कहाँ कि- मिलने गया है या छुपा बैठा है. सिपाही देखो साली ने घर मे ही छुपा रखा हो तलाशी लो सालों की. सिपाही घर मे घुस गया तलाशी लेता रहा बाहर निकला तो बोला साब कालू तो नही है पर 15000/- रुपया घर में से मिला है. लगता है ये उसी सेठ का है जिसकी हत्या की है. रत्ना बोली साब ये तो मेरा आदमी गुजरात से कमाई करके लाया है उसने किसी को लूटा नही है,किसी को मारा नही है, साब हम गरीब लोग है आपके हाथ जोड़ती हूँ साब हमको छोड़ दो. हवलदार बोला - चुप साली कुत्ति जुबान चलाती है तुझे मालूम है आगे रास्ते मे सेठ रामधन की लाश मिली है और उसके रुपए भी किसी ने लूट लिए है. गाँव मे कालू ही का पता लगा है जो साला कल से दारु पी रहा है और ऐश कर रहा है. उसी ने सेठ को मारकर लूटा है. रत्ना रो कर गिरगिराने लगी. इसी बीच कालू घर आया, पुलिस को देख घबराया व अज्ञात भय से वापस जाने लगा तभी सिपाही ने उसे पकड़ लिया, बोला साब ये भाग रहा था इसे पकड़ लिया है इसी ने हत्या की है साब. कालू बौखलाया खड़ा था किसकी हत्या कैसी हत्या वह समझ नही पा रहा था.तभी हवलदार ने लाठी से उसकी पिटाई शुरु कर दी. बता साले जिस हथियार से मारा था वो हथियार कहाँ है ? रुपए तो हमने बरामद कर लिए है. कालू याचना करता रहा नही साहब मैंने नही मारा, रुपये तो मै मज़दूरी करके लाया हूँ. साब मै किसी को क्यों मारुंगा,मेरी क्या दुश्मनी साब. हवलदार चिल्लाया - दुश्मनी , साले तु गुजरात गया जवान औरत को घर छोड़ गया. सेठ से लग गई होगी तूने देखा तो वार कर दिया और लूट लिया. नही साब मेरी औरत ऐसी नही है. अरे कैसी है वो तो दिख रही है. ऐसा कह कर हवलदार ने एक वहशि नजर औरत पर डाली और सिपाही से बोला ले चलो दोनो को. दोनो रोते रहे याचना करते रहे लेकिन उनकी एक न मानी. रत्ना अपने बच्चे को छाती से चिपकाए रोती खींची चली जा रही थी.साथ ही कालू को मारते हुए वे उन्हे थाने ले गए.

थाने पर सफाई हो रही थी. कल 15 अगस्त थी 61 वा स्वतंत्रता दिवस मनाने की तैयारी चल रही थी. हवलदार ने दोनो को थाने के बाहर बैठाया और थाने दार से कहा साहब रामधन के हत्यारे को ले आया हूँ और घर से 10 हजार रुपये ही बरामद किया है सिपाही ने इशारे से पूछा की 10 या 15 तो हवलदार ने सिपाही को चुप रहने का इशारा किया. और थाने दार से बोलने लगा की साहब कालू की औरत का सेठ से संबंध था कालू मज़दूरी पर गुजरात गया था कल जब कालू लौटा तो उसने उसकी औरत को सेठ के साथ पाया बस फिर क्या था कालू ने सेठ का काम तमाम कर दिया और 10 हजार रुपये लूट लिए. थानेदार ने कहा की रुपये कहा है हवलदार ने वो रुपये निकालकर दिये.फिर थानेदार ने कुटिल हँसी के साथ पूछा और सेठ की वो रखैल कहाँ है ? तो हवलदार बोला अरे साहब उसे भी लाया हूँ बड़ी मस्त चीज है.थानेदार ने कालू को भद्दी गाली देकर सिपाहीओ से धुलाई करवाई फिर थाने के एक कमरे में बंद करके पटक दिया. रत्ना थानेदार के पैरो मे गिरकर अपने पति के प्राणों की भीख मांगने लगी. थानेदार ने उसे हाथ पकड़ कर उठा लिया तथा कहा कि बच्चे को कालू को दे दे और तू सामने वाले क्वार्टर मे जाकर सफाई कर. इसी बीच सिपाही शराब की बॉटल लेकर आ गया. हवलदार व थानेदार शराब पीने लगे.थोड़ी देर मे थानेदार क्वार्टर मे गया दरवाजा बंद कर दिया अंदर से रत्ना के चिखने की आवाजे सुनाई देती रही हवलदार और सिपाही हँस- हँस कर शराब का मजा लेते रहे. आधे घंटे बाद थानेदार क्वार्टर से बाहर आया तो हवलदार क्वार्टर मे चला गया. ये सिलसिला रात भर चलता रहा.

सुबह थानेदार साहब जल्दी तैयार हो गये उन्हे स्वतंत्रता दिवस की सलामी लेना था झंडा फहराना था देश क 61 वा स्वतंत्रता दिवस था.वो जल्दी जल्दी तैयार हो रहे थे तभी कुशलपुर गाँव का चौकीदार रामलाल आया और बोला साब दगरु बदमाश पास के गाँव मे दारु पीकर मारपीट कर रहा था. लोगो ने पकड़ लिया उसके पास से 50000/- रुपये और रामधन सेठ के गले का हार भी मिला है , वह छुरा भी उसके पास है जिससे उसने हत्या की थी, लोग बैलगाड़ी मे बांधकर उसे ला रहे है. थानेदार बोला शाबाश उसे जल्दी लाओ साले को बंद कर दो.लोग दगरु को लाए थानेदार ने उसे बंद कर दिया और कालू को छोड़ा,उसकी औरत को अधमरी सी उसके साथ धकेल दी, और थानेदार बोला की ये तो गनीमत है की दगरु पकड़ा गया वरना तेरी जिंदगी खराब हो जाती चल अब जा भाग यहा से, कालू बोला साहब मेरे पैसे - तो थानेदार बोला काहे के पैसे तु क्या करोड़पति है जो घर में हजारो रुपये रखता है चला जा यहा से वरना यही सड़ता रहा जायेगा . रत्ना बच्चे को लेकर कालू का हाथ पकड़ अपनी फटी साड़ी सम्हाले उसी गाँव की बैलगाड़ी मे बैठ गयी जिसमें दगरु को लोग लाए थे.

स्वतंत्रता दिवस मनाया जा रहा था किसी नेता का भाषण हो रहा था अब यहा किसी के साथ जुल्म नही हो सकता है हम आजाद है, अपनी रक्षा के लिए कानून है, हमारे सिपाही है,मानव आयोग है,महिला आयोग है. रत्ना ये सुन रही थी साड़ी से पेट छुपाती तो पीट दिखती और पीट छुपाती तो पेट दिखता. पास जाते बच्चे झंडे लेकर गाना गा रहे थे सारे जहाँ से अच्छा हिंदुस्तान हमारा. एक बच्चे के हाथ से झंडा उड़कर रत्ना के उपर जा गिरा रत्ना ने झंडे से अपना बदन ढका, दुर कहीं संगीत गूँज रहा था जहा डाल डाल पर सोने कि चिड़िया करती है बसेरा, और कालू रत्ना से पूछ रहा था कि हम तो लूट गये शाम को खायेंगे क्या ? तभी थानेदार की गाड़ी सलामी देकर लौटी उन्हे देख रत्ना घबराकर बेहोश हो गयी. गाड़ी धीरे धीरे कुशलपुर जा रही थी देश 61 वा स्वतंत्रता दिवस मना रहा था.

प्रेषक

मोनिका दुबे

मीठे बोल बोलिए


व्यक्ति के अच्छे कर्म व अच्छे विचार ही उसे समाज में विशेष स्थान दिलाते हैं. आपके व्यवहार मे यदि मधुरता है बोली मे मिठास है तो आप हर दिल में अपनी खास पहचान बना लेते है. मधुर व्यवहार ही प्रेम रुपी ताले की चाबी है. समाज मे सम्मान व आदर पाने के लिए आपको अपने व्यवहार मे सौम्यता, शिष्टाचार,सम्मान- भाव, शालीनता व मुस्कान जैसी बाते शामिल करना चाहिए. मीठी बोली से नफरत व तिरस्कार के काँटे भी प्रेम व आत्मियता के फूलों मे बदल जाते है. सही संयम,समझ व संतुलन अपनाकर आप अपना व्यवहार मधुर बना सकते है.

बंदूक की गोली की तरह मुँह से निकले शब्द भी कभी वापिस नही आते. अतः हमेशा सोच समझ कर शब्दों का इस्तेमाल करना चाहिए. सिर आदर मे झुकाने पर ही स्वयं को आदर मिलता है. अतः आदर को अपने व्यवहार मे शामिल करे. अच्छा व्यवहार व मीठी बोली व्यक्ति को आभावान बनाती है.समाज मे अच्छी छबि बनाने के लिये व्यवहार मे मधुरता जरूरी हैं. साथ ही इसमें खुशियों की बहार भी छिपी होती है.

हमेशा सकारात्मक सोच रखना चाहिए इससे व्यवहार मे बदलाव आता हैं. बदले की भावना ईर्ष्या,द्वेष से खुद को दूर रखना चाहिए. किसी दूसरे से यदि आप मधुरता की उम्मीद रखते है तो बदले मे आपको भी उसके साथ मधुरता से पेश आना चाहिए. अच्छे संस्कार ही अच्छा इंसान बनाते है अतः बच्चो को भी बचपन से ही अच्छे व्यवहार की सीख देनी चाहिए. व्यवहार में मिठास लाकर आप वो खुशियाँ पायेंगे जो धन दौलत से नहीं मिलती.

इतिहास गवाह है जब भी बोली का दुरुपयोग किया गया है तब हमें महाभारत जैसे युद्ध का सामना करना पड़ा है राम जी को वनवास भी मंथरा की कटु वाणी से कैकई के मन में ईर्ष्या भर देने से मिला. अतः हमेशा मीठे बोल बोलिए.

मधुर व्यवहार के लिये कुछ खर्च नहीं करना पड़ता है जबकि नफरत और बुरा व्यवहार आपको नष्ट कर देता है.

प्रेषक

मोनिका

रात भर मुझको नींद ही आती नही


रात भर मुझको नींद ही आती नही

गीत सुंदर सा कोयल सुनाती नहीं

मेरे भारत की हालत कहा जायेगी

पूछने पर मेरी माँ बताती नही

रात भर मुझको नींद ही आती नहीं

कश्मीर मे रोज हिंदू मरते रहे ,

जख्म अपनों के हम रोज भरते रहे

देश मे रह विदेशो की तारिफे

अपने लोगो के मुह से ही सुनते रहे

कब तलक चलेगा सिलसिला इस तरह

सरकार देश की बताती नही

रात भर मुझको नींद ही आती नही

कोई नंगा यहा कोई भूखा खड़ा ,

बाड़ मे कुछ मरे कही सूखा पड़ा

कही पानी नही कही समुंदर भरे ,

कोई तर माल में कोई रुखा पड़ा

ये ऊँच नीच की दीवारें कब टूटेगी ,

अर्थनीति हमे ये बताती नही

रात भर मुझको नींद ही आती नही

वीर शिवा, राणा, दुर्गा की हमने सुनी कहानी ,

इस धरती के खातिर दी अनेको ने कुर्बानी

उसी देश मे करते जो अपमान सरस्वती माता का

,कैसे कहेंगे अपने को की वे है हिंदुस्तानी

इन भ्रष्ट बुद्धि को सदबुद्धि कब आयेगी

माँ शारदे मुझे ये बताती नही.

रात भर मुझको नींद ही आती नही

अंत मे मेरी माँ ने मुझसे कहा कि

अब जवानो के कंधों पर सब भार है ,

वे ही इस देश का तारण हार है ,

भ्रष्टाचारो और गद्दारो से मुक्त करने का

तुम पर ही सब भार है,

तुमसे ही सुनहरा बनेगा ये भारत

माँ मेरी दिनभर ये बताती रही.

माँ मेरी दिनभर ये बताती रही.

अधूरा


सामने का बंगला लगभग 1 वर्ष से खाली था, आज वहाँ साफ सफाई हो रही थी. लगता है किसी ने बंगला किराए से ले लिया है. मै शासकीय कार्य से दो दिन शहर से बाहर रहा वापिस लौटा तो अनायास बंगले की तरफ निगाह गई, देखा किसी ने वहाँ डेरा डाल दिया है. घर पत्नी ने बातों बातों मे बताया कि सामने एक वृद्ध दम्पत्ति व उनके साथ एक 4-5 साल की लड़की है. इन्होंने यह बंगला किराए से लिया है. कहा से आए है क्या करते है, कुछ मालूम नहीं, जब से आए है दरवाजा बंद ही रहता है. कालोनी में सभी महिलाएँ इनके बारे में जानने को उत्सुक है, लेकिन किसी को कुछ भी ज्ञात नहीं हो सका. मैने कहा तुम महिलाओं को इसके अलावा कोई और काम भी आता है, मेरी झिड़की सुन पत्नी कमरे से बाहर चली गई और मै निढाल बिस्तर पर सो गया.

सुबह की सैर से लौटा तो अखबार दरवाजे मे पड़ा था, रोज की तरह गैलरी में बैठकर चाय की चुस्की के साथ अखबार पड़ रहा था, एक निगाह सामने वाले बंगले पर गई उसकी खिड़की मे कुछ हलचल थी . मैने देखा एक बच्ची खिड़की से झाँक रही हैं, बहुत खूबसूरत, घुँघराले काले बाल, बड़ी बड़ी आँखें एसी मोहक बच्ची की जो एक बार देखे वो बार बार देखने को लालायित हो. मैने बच्ची को पास आने का ईशारा किया तो वह मुस्कुरा दी मैने फिर कुछ उलटी सीधी हरकतें की तो वो ताली बजाकर हँसने लगी.इससे मेरा हौसला बड़ा और मै इशारों में बच्ची से दोस्ती करने लगा. अचानक पीछे से एक वृद्ध आए शायद वे ही यहा के किराएदार थे. उन्होंने बच्ची को खिड़की से हटाया और जोर से खिड़की बंद कर दी. मैं उनके इस व्यवहार को समझ नही पाया. दूसरे दिन सुबह जब सैर पर निकला तो वे वृद्ध बाहर लॉन में घूम रहे थे मैंने उनसे अभिवादन किया तो उन्होंने कोई प्रति उत्तर नहीं दिया. मै मन ही मन सोच रहा था कैसा खडुस बुड़ा है. किसी से बात ही नही करता. घुम कर वापिस आया तो गैलरी मे पहुच कर सामने वाले बंगले पर निगाह दौड़ाई, बच्ची आज भी वहाँ बैठी थी. मैं फिर उसे इशारा करने लगा प्रति उत्तर मे बच्ची कभी खिलखिलाती कभी ताली बजाती पर जैसे ही वृद्ध दंपती मे से किसी की निगाह उस पर पड़ती वे बच्ची को खींच कर ले जाते व खिड़की बंद कर देते. अब तो जैसे मेरा रोज का क्रम बन गया था. अखबार और चाय के साथ सामने वाली खिड़की की बच्ची भी मेरे सुबह के कार्यक्रम मे शामिल हो गई थी.

पत्नी हमेशा सामने वाले बंगले की दिन भर की कहानी सुनाती रहती थी. ये किसी से मिलते नहीं बोलते नहीं, बच्ची को निकलने नही देते. कालोनी मे सब महिलाए तरह तरह की बाते करती रहती है. आप भी पत करो ना ये लोग कौन है? बच्ची कहाँ से लाए है? मै पत्नी के प्रश्न पर मौन रहा पर मन ही मन मै भी यह सब जानने को उत्सुक था.

सामने वाले किराएदार को आए 6 माह हो गए लेकिन कोई उनके बारे में जान नही पाया. वे दैनिक सामान सब्जी,दूध लेने निकलते लेकिन किसी से बात नही करते. कालोनी मे भी किसी से उनका संबंध नही था. रोज शहर जाते थे तथा उनके जीवन उपयोगी सामान लेकर शायद लौट आते है ऐसा अनुमान कालोनी वालो का था.

रोज की तरह मैं आज गैलरी मे आया लेकिन आज सामने कि खिड़की बंद थी. बच्ची नजर नही आई मैने अनुमान लगाया कि शायद ये लोग बाहर गए होंगे इसलिए मैंने नीचे आकर देखा बंगले का दरवाजा खुला था मतलब वे घर पर ही थे पर बच्ची के नजर नही आने से मुझे लगा की आज मुझे सुबह की चाय और अखबार के साथ जो रोज लगता है वो मुझे नही मिला.

थोड़ी देर मे वृद्ध को बाहर जाते देखा वे तेजी से कालोनी की दाई तरफ निकले और 5-7 मिनट बाद एका टैक्सी लेकर लौटे. मै उत्सुकता से देखने लगा. घर से दम्पत्ति बच्ची को गोदी मे उठाए एक बैग लेकर टैक्सी में बैठे. बच्ची उदास लग रही थी शायद बीमार थी और वे उसे अस्पताल ले जा रहे थे मैने चाहा कि उनकी मदद करु पर संकोचवश कुछ कह नही पाया और टैक्सी आँखों से ओझल हो गई.

चार दिन तक बंगला सुना था, किसी को कोई जानकारी नही थी. पाँचवें दिन अस्पताल की वेन और उसके पीछे दो तीन कारे देख मै चौक गया. मैने देखा अस्पताल कि वेन से सफेद चादर मे लिपटा शव निकला. अस्पताल कर्मचारी शव को बाहों मे उठाए घर मे ले जा रहे थे और वृद्ध दम्पत्ति रोते हुये कुछ लोगो के साथ बंगले के अंदर जाते दिखे.

मै समझ गया कि बच्ची नहि रही लेकिन इतनी अच्ची बच्ची कैसे मर सकती है. मेरा मन इस बात को स्वीकार नही कर पा रहा था. शव दफनाने की तैयारी मे साथ आए लोग लगे थे. मै भी इस नाते कि दम्पत्ति का व्यवहार कैसा भी रहा हो पर मेरा उस बच्ची से अनजान रिश्ता हो गया था वहा जाने का मना बना चुका था.पत्नी ने कुछ पूछना चाहा पर मैं बग़ैर कुछ कहे सामने के बंगले पर पहुच गया. वहा वृद्ध दम्पत्ति और साथ के लोग सभी खामोश थे और बच्ची के अंतिम संस्कार कि तैयारी मे थे मै भी उनके काम मे हाथ बटाने लगा. एक अजीब सुनापन था. कोई किसी से बोल नही रहा था थोड़ी देर मे शव को लेकर हम लोग पास के श्मशान गए जहाँ उसे दफनाया गया. और उदास खामोश सभी वापिस आ गए. 2 मिनट बंगले पर रुक मै बाहर आया तो एक व्यक्ति जो शव दफनाने मे शमिल थे मुझसे बोले कि क्या मै आपके मोबाईल का उपयोग कर सकता हूँ. मैने कहाँ क्यो नहीं. यह कह मैने अपना मोबाइल उनकी और बड़ा दिया. उन्होंने मोबाईल पर किसी से बात की और मुझे मोबाईल लौटाकर धन्यवाद दिया. मैने कहा इसकी कोई आवश्यकता नही है मै सामने वाले ही बंगले मे रहता हूँ अपना परिचय दिया व उन्हें चाय के लिए बुलाया. वे भी थके थे और वृद्ध दम्पत्ति के यहाँ कोई नही था जो चाह आदि बना सके. इस कारण वे मेरा आग्रह नही टाल सके मैं उन्हें साथ लाया व बंगले के लॉन मे लगी कुर्सी पर हम बैठ गए.मैने चाय के लिए पत्नी को आवाज लगाई. मै अपनी जिज्ञासा शांत करना चाहता था. मैने उनसे सामने वाले दम्पत्ति के बारे मे पूछा उन्होंने जो बताया उसे सुनकर मै अपने आप से ग्लानि करने लगा . उन्होने कहा कि इनका लड़का फौज मे कर्नल था. जो लद्दाख मे तैनात था. लखनऊ मे इनका अपना घर है, जहाँ ये वृद्ध दम्पत्ति अपनी बहू के साथ रहते थे एक दिन इनका बेटा लद्दाख से लौटा तो बीमार था. सेना के डॉक्टरों ने बताया कि उसे एड्स हो गया है, इसी एड्स कि बीमारी में 1 वर्ष मे इनका बेटा मर गया, उसी वर्ष इनके यहा पोती का जन्म हुआ, लेकिन चिकित्सकों ने बताया कि इनकी पोती व बहू भी एड्स के शिकार हो चुके हैं, 3 वर्ष तक लड़ती हुई इनकी बहू भी मौत के आगोश मे चली गई. रह गए ये वृद्ध दम्पत्ति और वो बच्ची. मोहल्ले के लोग इन्हें अछूत मानते इन पर फिकरे कसते, और इन्हें जलील करते. बच्ची को कोई पास नही बिठाता, इस जलालत से बचने के लिए इन्होंने शहर छोड़ दिया और दूर इस अनजान शहर मे आ गए यहाँ किसी से संपर्क इसलिए नही किया कि फिर नही अपमान और नफरत की निगाह से उन्हें देखा जाएगा. आज उनके बेटे कि आखरी निशानी भी चली गई. ये सुन मै सन्न रह गया. मै क्या क्या सोचता था इस दम्पत्ति के बारे में लेकिन वे इस तरह का आचरण क्यो कर रहे थे यह आज जान पाया. मुझे अपने आप पर गुस्सा आ रहा था मै उस दम्पत्ति से क्षमा माँगना चाहता था तथा भविष्य मे कोई सहयोग चाहिए तो मै मदद के लिए तैयार हूँ ऐसा आश्वासन देना चाहता था. लेकिन दुसरे दिन सुबह मैंने देखा कि बंगला खाली है शायद वे रात को ही कही ओर चले गये थे. सामने बंद खिड़की थी जिस पर सूरज कि पहली किरण गिर रहीं थी उस किरण मे ऐसा लग रहा था कि बच्ची खिलखिला कर हँस रही है ताली बजा रही है.मै अखबार और चाय के बाद आज मिलने वाले सुकून से अधूरा रह गया था.

प्रेषक मोनिका दुबे