

हर वर्ष दीपावली आती हैं और लाखों करोड़ों रुपए पटाखे बन धुएँ में बदल जाते हैं. हर वर्ष यहीं प्रश्न मन में उठता हैं कि क्या यहीं सही तरीका हैं त्योहार मनाने का..?
देश में जहाँ आर्थिक रूप से संपन्न लोग हैं वहीं एक वो तबका भी हैं जिसे दो वक्त की रोटी नसीब नही होतीं. कई बच्चे आज भी भूख से तड़पते हुए मौत की नींद सो जाते हैं.
कहीं बाढ़ तो कहीं सूखे की मार से परेशान चेहरे. कहीं भूकंप की चपेट में आए परिवार के अनाथ बच्चे. भूख से बिलखता मासूम और उसकी बेबस माँ. मज़बूर पिता जो गरीबी के कारण अपने बच्चों को नए कपड़े मिठाई नहीं दिला सकता. ऐसे हजारों चेहरे जिनके लिए दिवाली खुशियाँ नहीं लाती बल्कि उनके बच्चे ललचाई नजरों से उच्च वर्ग को दिवाली मनाते देखते हैं और आस लगाते हैं कि एक दिन उनकी किस्मत का तारा भी चमकेगा.
हर साल में ये सवाल अपने आप से करती हूँ. जब लोगो को हजारों रुपयों को जलाते हुए देखती हूँ. इस देश में एक वर्ग ऐसा हैं जो एक वक्त रोटी खाता है और दूसरे वक्त पानी से गुजारा करता है. वहीं दूसरी तरफ उच्च वर्ग कई तरह के मिष्ठान खाता हैं और बचा हुआ फेंक देता हैं.
मैं ये सोचती हूँ कि जितने रुपयों के हम पटाखे जलाते हैं वहीं रुपयों से यदि किसी जरूरत मंद की मदद की जाएँ तो सही मायने में त्योहार सार्थक होंगा. किसी गरीब की मदद कर के जो सुकून मिलेगा वो इन पटाखे से लाख गुना बेहतर हैं. मैं ये नहीं कहतीं की त्योहार नहीं मनाए, जरूर मनाए खुशियाँ तो बाँटने से बढ़ती हैं लेकिन उन्हीं खुशियों में कुछ ऐसे लोगों को भी शामिल करें जिनके लिए पेट भर भोजन सपने की तरह हैं. ऐसे चेहरों पर मुस्कान लाइए आपका त्योहार अनोखा होंगा ये मेरा दावा हैं.
मैं ये जानती हूँ कि केवल लिख देने या कह देने से कुछ बदलता नहीं बल्कि प्रयास करने से बदलाव आते हैं यह केवल अपनी वाहवाही पाने को लिखा गया लेख नहीं बल्कि मेरा प्रथम प्रयास हैं बदलाव की दिशा में.
मैं चाहती हूँ कि हम बदले हमारी सोच बदले हमारा तरीका बदलें ताकि देश में नई रोशनी नई किरण फैले और एक नई सुबह हो जिसमें हर जगह सुख शांति प्यार हों. जहाँ कोई भूख से दम न तोड़े.कोई लाचारी न हों. ऐसा भारत जहाँ केवल आत्मीयता और प्रेम हों भेदभाव न हों हिंसा न हों.
मुझे यकीन हैं कि आप लोग मेरा सपना साकार करने में मेरी मदद करेंगे और अब से हर वर्ष दिवाली नए तरीके से मनाएँगे और केवल दिवाली ही क्यों किसी को खुशियाँ देने के लिए हर दिन महत्वपूर्ण हैं बस हम फिजूल खर्च न कर किसी नेक कार्य में पूँजी लगाए. उम्मीद करती हूँ मेरा लिखा सार्थक होंगा.
“ न कहीं दंगा न कहीं फसाद होंगा
हिंदू, मुसलमान हर जगह साथ साथ होगा
सभी के बाग में मोहब्बत के फुल खिलते हों
हाँ मेरे सपनों का ऐसा भारत होगा”
प्रेषक
मोनिका दुबे (भट्ट)