गुरुवार, 30 अक्तूबर 2008

सपनों का भारत



हर वर्ष दीपावली आती हैं और लाखों करोड़ों रुपए पटाखे बन धुएँ में बदल जाते हैं. हर वर्ष यहीं प्रश्न मन में उठता हैं कि क्या यहीं सही तरीका हैं त्योहार मनाने का..?
देश में जहाँ आर्थिक रूप से संपन्न लोग हैं वहीं एक वो तबका भी हैं जिसे दो वक्त की रोटी नसीब नही होतीं. कई बच्चे आज भी भूख से तड़पते हुए मौत की नींद सो जाते हैं.

कहीं बाढ़ तो कहीं सूखे की मार से परेशान चेहरे. कहीं भूकंप की चपेट में आए परिवार के अनाथ बच्चे. भूख से बिलखता मासूम और उसकी बेबस माँ. मज़बूर पिता जो गरीबी के कारण अपने बच्चों को नए कपड़े मिठाई नहीं दिला सकता. ऐसे हजारों चेहरे जिनके लिए दिवाली खुशियाँ नहीं लाती बल्कि उनके बच्चे ललचाई नजरों से उच्च वर्ग को दिवाली मनाते देखते हैं और आस लगाते हैं कि एक दिन उनकी किस्मत का तारा भी चमकेगा.

हर साल में ये सवाल अपने आप से करती हूँ. जब लोगो को हजारों रुपयों को जलाते हुए देखती हूँ. इस देश में एक वर्ग ऐसा हैं जो एक वक्त रोटी खाता है और दूसरे वक्त पानी से गुजारा करता है. वहीं दूसरी तरफ उच्च वर्ग कई तरह के मिष्ठान खाता हैं और बचा हुआ फेंक देता हैं.

मैं ये सोचती हूँ कि जितने रुपयों के हम पटाखे जलाते हैं वहीं रुपयों से यदि किसी जरूरत मंद की मदद की जाएँ तो सही मायने में त्योहार सार्थक होंगा. किसी गरीब की मदद कर के जो सुकून मिलेगा वो इन पटाखे से लाख गुना बेहतर हैं. मैं ये नहीं कहतीं की त्योहार नहीं मनाए, जरूर मनाए खुशियाँ तो बाँटने से बढ़ती हैं लेकिन उन्हीं खुशियों में कुछ ऐसे लोगों को भी शामिल करें जिनके लिए पेट भर भोजन सपने की तरह हैं. ऐसे चेहरों पर मुस्कान लाइए आपका त्योहार अनोखा होंगा ये मेरा दावा हैं.

मैं ये जानती हूँ कि केवल लिख देने या कह देने से कुछ बदलता नहीं बल्कि प्रयास करने से बदलाव आते हैं यह केवल अपनी वाहवाही पाने को लिखा गया लेख नहीं बल्कि मेरा प्रथम प्रयास हैं बदलाव की दिशा में.
मैं चाहती हूँ कि हम बदले हमारी सोच बदले हमारा तरीका बदलें ताकि देश में नई रोशनी नई किरण फैले और एक नई सुबह हो जिसमें हर जगह सुख शांति प्यार हों. जहाँ कोई भूख से दम न तोड़े.कोई लाचारी न हों. ऐसा भारत जहाँ केवल आत्मीयता और प्रेम हों भेदभाव न हों हिंसा न हों.

मुझे यकीन हैं कि आप लोग मेरा सपना साकार करने में मेरी मदद करेंगे और अब से हर वर्ष दिवाली नए तरीके से मनाएँगे और केवल दिवाली ही क्यों किसी को खुशियाँ देने के लिए हर दिन महत्वपूर्ण हैं बस हम फिजूल खर्च न कर किसी नेक कार्य में पूँजी लगाए. उम्मीद करती हूँ मेरा लिखा सार्थक होंगा.

“ न कहीं दंगा न कहीं फसाद होंगा
हिंदू, मुसलमान हर जगह साथ साथ होगा
सभी के बाग में मोहब्बत के फुल खिलते हों
हाँ मेरे सपनों का ऐसा भारत होगा”

प्रेषक
मोनिका दुबे (भट्ट)

शनिवार, 25 अक्तूबर 2008

पापा की सीख


बचपन से बेटी अपने पापा के बहुत नजदीक होती है. पापा के दिल का टुकड़ा. जरा सी खरोंच भी आ जाएँ तो पापा अपनी बिटिया की तकलीफ दूर करने को तत्पर रहते है.

मै भी वैसे ही अपने पापा के बहुत नजदीक हूँ. मेरे पापा मेरे आदर्श है. बचपन से ही मेरी दुनिया अपने पापा से शुरु होती है.मेरे हर हुनर को पापा ने पहचान दी. समय बीतता रहा और कब मेरी उम्र विवाह योग्य हो गई मैं नही जानती.लेकिन पापा के चेहरे पर कभी कभी वो चिंता की लकीरें दिखाई देती थी जो एक पिता को अपनी बेटी के विवाह के लिए होती है.

और एक दिन वो घड़ी भी आई जो एक बेटी और पिता के लिए सबसे मुश्किल घड़ी होती है. वो घड़ी थी मेरी विदाई की. मुझे माता पिता ने बचपन से अच्छे संस्कार देने का प्रयास किया था. पढ़ाई के कारण ज्यादातर समय मैं अपने घर से दूर रही हूँ इसलिए ग्रहकार्य कर पाने मे निपुण नही थी.

पापा इस बात को अच्छी तरह से जानते थे. पापा मेरे मार्गदर्शक और मेरे पथ प्रदर्शक भी रहे हैं. इसलिए मेरी समस्या को समझते हुए उन्होंने मेरे लिए एक पत्र लिखा और मेरी बिदाई के समय वह पत्र मेरे हाथ मे देकर नम आँखों से मुझे बोले मैंने तुम्हारे लिए कुछ लिखा है जो शायद तुम्हारे लिए उपयोगी साबित होंगा इसे बाद मे पढ़ लेना.


वह पत्र मेरे लिए किसी अमृत वचन से कम नहीं है. समय समय पर उस पत्र ने मेरा बहुत साथ दिया. मैं उस पत्र को आप सभी के साथ शेयर करना चाहती हूँ ताकि जैसे मुझे उस पत्र ने मार्गदर्शित किया कुछ और बेटियों को भी मार्गदर्शित कर सकें.

प्रिय मोना,

आज पहली बार तुम्हारे पापा को तुमसे कुछ कहने के लिए कलम का सहारा लेना पड़ रहा है. लेकिन मुझमें इतनी हिम्मत नहीं कि ये सब मैं तुम्हें उस क्षण बता सकूँ जब तुम अपने पापा को छोड़ नए दुनिया मे कदम रख रही होंगी.
बिटिया जब आपका विवाह होता हैं तो आप उस पूरे परिवार से जुड़ जाते हो. हमेशा अपने परिवार का मान सम्मान बनाए रखना. मैने और तुम्हारी मम्मी ने हमेशा तुम्हें अपने से बड़े का आदर करना सिखाया है इसे भूलना नही.
मै जानता हूँ कि तुम्हें घर के कार्य ठीक से नहीं आते लेकिन धैर्य व लगन से यदि कार्य करने का प्रयास करोंगी तो निश्चित रूप से सभी कार्य कर पाओंगी. तुम्हें कुछ जरूरी बातें बता रहा हूँ जो तुम्हें मदद करेंगी.

प्रातः जल्दी उठने की आदत डाले. इससे कार्य करने मे आसानी होती है साथ ही शरीर भी स्वस्थ रहता है.

घर के सभी बड़े लोगो को सम्मान दे व कोई भी कार्य करने से पूर्व उनकी अनुमति ले.

भोजन मन लगाकर बनाने से उसमें स्वाद आता है कभी भी बेमन या घबराकर भोजन नही बनाओ बल्कि धैर्य से काम लो.

यदि तुम्हें कोई कार्य नही आता तो अपने से बड़े से उसके बारे मे जानकारी लो.और उसे करने की कोशिश करो.

गुस्सा आदमी का सबसे बड़ा दुश्मन है. हमेशा ठंडे दिमाग से काम लो. जल्दबाजी मे कोई कार्य न करो.

गलतियाँ सभी से होतीं है. कभी भी कोई गलती होने पर तुरंत उसे स्वीकार करो. क्षमा माँगने से कभी परहेज़ न करो.

किसी के भी बारे मे कोई भी राय बनाने के पहले स्वयं उसे जाने,परखे तभी कोई राय कायम करे.सुनी हुई बातों पर भरोसा करने के बजाए स्वविवेक से निर्णय ले.

सास ससुर की सेवा करें. उन्हें दिल से सम्मान दे. उनकी बातों को नजर अंदाज न करे. न ही उनकी किसी बात को दिल से लगाए.

हमेशा अपने पापा के घर से उस घर की तुलना न करो. न ही बखान करो. वहाँ के नियम वहाँ के रिवाज अपनाने का प्रयास करो.

किसी भी दोस्त या रिश्तेदार को घर बुलाने के पहले घर के बड़े या पति की आज्ञा ले.

विनम्रता धारण करो. संयम से काम लो.कोई भी बिगड़ी बात बनाने का प्रयास करो बिगाड़ने का नही.

कोई भी कार्य समय पर पूरा करे. समय का महत्व पहचानो.हर कार्य के लिए निश्चित समय निर्धारित करो व उसे पूर्ण करो.

घर के सभी कार्य मे हर सदस्य की मदद करें. जो कार्य न आए उन्हें सीखे.


ऐसी और भी कई छोटी छोटी बातें है जिनका यदी ध्यान रखा जाएँ तो गृहस्थी अच्छी तरह से चलती है. बिटिया अपनी जिम्मेदारियो से मुँह नही फेरना बल्कि उन्हें अच्छी तरह से निभाना. मुझे तुम पर पूरा भरोसा है. मै जानता हूँ कि तुम अपने ससुराल मे भी अपने मम्मी पापा का नाम ऊँचा रखोंगी व हमे कभी तुम्हारी शिकायत नही आएँगी. तुम सदा खुश रहो और अपनी जिम्मेदारियाँ ठीक से निभाओ यही आशीर्वाद देता हूँ.

तुम्हारा पापा
राजेंद्र दुबे


दोस्तों , आज मै अपने ससुराल मे सबकी चहेती हूँ. ससुर जी मेरी तारीफ करते नही थकते. ये सब पापा की सीख का परिणाम है. उम्मीद करती हूँ कि आपको भी मेरे पापा की सीख मदद करेंगी. और आप भी अपने गृहस्थ जीवन मे सबके चहेते बने रहेंगे.

प्रेषक
मोनिका दुबे (भट्ट)

गुरुवार, 23 अक्तूबर 2008

अधूरी जिंदगी


मै बहुत खुश थी कि इक नन्हा फरिश्ता मेरी दुनिया मे आने वाला है.उसकी कल्पनाओं से मेरे कई ख्वाब सजने लगे थे. नन्हा सा फरिश्ता जब मुझे माँ कहेगा तो मेरा रोम रोम पुलकित हो जाएगा.जब वो चलेगा तो पुरा घर खुशियों से भर जाएगा.

मुझे नही पता कि तुम कैसे दिखाई देते हों.मेरे लिए तुम मेरी जिंदगी हो. मेरा हिस्सा हो. जब तुम हंसोंगे तो तुम्हारी हँसी पर अपना सब कुछ वार दूँगी. तुम्हें कभी आँसू नही बहाने दूँगी. तुम्हारे बदले मैं कुछ नही माँगती.तुम्हारा बेसब्री से इंतजार कर रही थी मै.

तुम मुझे नया जीवन दोगे. नई उमंग नया उत्साह दोंगे.तुम मेरी परछाई हो और तुम मुझसे कभी दूर नही जाओगे. मै तो यहीं ख्वाब देख रही थी . मुझे नही पता था कि परछाई भी कभी कभी अपना साथ छोड़ देती है और तुम तो मेरी कल्पना हि हो. मैं नही आना चाहती थी उस दुनिया के बाहर.

अचानक मेरा ख्वाब टूट गया. मुझे लगा कि तुम कही जा रहे हो बिना मुझे कुछ कहें. मुझे एहसास हुआ कि तुम्हारा नन्हा हाथ मेरे हाथों से छूट रहा है. मै तुम्हें रोकना चाहती हूँ पर रोक नही पाती. तुम्हें एक बार छू कर देखना चाहती थी मैं. तुम्हें जी भर प्यार करना चाहती थी मै.

मुझे लगा कि तुम मुझसे कुछ कह रहे हो.पर मै तुम्हारी आवाज नही सुन पा रही हूँ. मुझे लगा कि तुमने मुझे माँ कहा और तुम दूर बहुत दूर चले गए. मुझसे बहुत दूर. मै बहुत छतपटाई बहुत तड़पी मगर तुम्हें रोक न सकीं. तुम खो गए न जाने कौन सी दुनिया मे. और मुझे दे गए अधूरी जिंदगी. मेरी दुनिया सुनी हो गई.

सोचती हूँ तुम क्यों आए थे मेरे ख्वाबों में जब तुम्हें एक दिन चले ही जाना था. शायद मुझे जिंदगी का सबक सिखाने कि जो आता है वो जाता भी है. फिर भी मुझे तुम्हारा आज भी इंतजार हैं कभी तुम आओगे और मुझे माँ कहोंगे. मेरी अधूरी जिंदगी पूरी करोगे और मेरे जीवन का एक दाग हमेशा को मिटा दोंगे.

प्रेषक
मोनिका दुबे(भट्ट)

सोमवार, 13 अक्तूबर 2008

नारी ही नारी की दुश्मन


सामने की हवेली मे हलचल थी किसी के रोने की आवाज आ रही थी.आठ दस लोग जमा थे. मैने जिज्ञासा वश पता किया तो मालूम हुआ कि सेठ हीरालाल की बहु नही रही. घरवालों ने बताया कि उसने आत्महत्या कर ली. मुझे यकीन नही हुआ सेठ की बहू मानसी इसी शहर के शिक्षक ज्ञान प्रकाश की छोटी लड़की थी .हम उसे बचपन से जानते थे बेहद खूबसूरत, प्रत्येक काम मे पारंगत,मृदुभाषी मानसी पूरे मोहल्ले की चहेती थी.

सेठ हीरालाल के पुत्र विकास की कॉलेज मे मानसी से मित्रता हुई जो बाद मे प्रेम और शादी मे तबदील हो गई. सेठ हीरालाल के परिवार ने इस शादी का घोर विरोध किया कि एक मामूली शिक्षक की लड़की हमारे परिवार की बहू नही बन सकती. पर पुत्र मोह के कारण सेठ को हार मानना पड़ी व शादी संपन्न हुई.


उसके बाद से मानसी की गरीबी को लेकर उसके खाली हाथ ससुराल मे आने से उस पर फिकरे कसे जाते थे. प्रताड़ित किया जाता था. शायद यही वजह उसकी आत्माहत्या की थी. मानसी के पिता ज्ञानप्रकाश को एक ही शहर मे होने के बावजूद खबर तक नही दी गई. और उसका दाह संस्कार कर दिया गया.ग्यान प्रकाश ने पुलिस थाने से लेकर पुलिस अधीक्षक तक गुहार लगाई लेकिन सेठ हीरालाल के सिक्कों की खन खन मे उनकी आवाज दब गई. और मामला पूरी तरह समाप्त हो गया.

आज देश में हजारों मानसी दहेज और गरीबी का शिकार हो रही हैं. और ये सबसे दुख की बात है कि औरत की दुश्मन औरत ही हैं.जब एक लड़की दुलहन बन ससुराल आती हैं तो उसके मन के कई ख्वाब पल रहे होते हैं. तब समाज और मोहल्ले की औरतें एकजुट हो कर उसके गले का हार, नाक, कान्, के आभूषण, उसकी चूड़ी उसकी पायल देखते हैं.उसके कपड़े कितने भारी है इस पर निगाह होती हैं. इन चीजों मे कमी होने पर उसे पता नही क्या क्या संज्ञाए दी जाती है.

औरत बेटी के लिए चाहती है की वो योग्य हो समझदार हो लेकिन बहु के लिये उसकी सोच विपरीत होती हैं बहू उनसे कम समझदार हो हमेशा उनकी मातहत बनी रहे अक्ल मे उनसे कमजोर रहें माल उनसे ज्यादा लाए. यही महिलाओं की मानसिकता की वजह से औरत औरत की दुश्मन बन जाती है.


यह सच हैं कि आज महिलाएँ देश के हर क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही है. किरण बेदी,सानिया मिर्जा, और देश के राष्ट्रपति पद तक पहुँच गई है . लेकिन ऐसी महिलाओं की संख्या उँगलियों पर गिनी जा सकती हैं और देश कि 70% महिलाएँ आज भी पैरों की ज़ुति है.

भारत गाँवों का देश है और गाँवों मे महिला शिक्षित नही हैं. वे पुरुषों के अधीन है, उनके जुल्म, उन पर हो रही यातना की खबर शहरों तक आ ही नही पाती. वहीं शहरों मे वो तबका जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं, उनकी बेटियाँ भी अपनी मनपसंद जगह शादी नहीं कर पाती क्योकी उनका परिवार सक्षम नहीं होता.

आजादी के 61 सालों बाद भी नारी कि ऐसी स्थिति के लिए हमारा समाज ही जिम्मेदार हैं. नारी ही नारी की दुश्मन बन बैठी है. महिलाएँ ही महिलाओं को समाज मे वो विशेष स्थान दिला सकती हैं जिसकी वो हकदार है. अतः महिलाओं को ही आगे आना होंगा तभी समस्या का समाधान संभव हैं ,अब भी समय है जाग जाएँ और अपना वजूद बनाए रखने को कदम बढ़ाएँ.शायद ये पंक्तियाँ आपका हौसला बढ़ाएँ

"जिस क्षण न रुकती हो नयन सावन झड़ी
उस क्षण हँसी ले लो किसी तसवीर से
जब हाथ से टूटे न अपनी हथकड़ी
तो माँग लो ताकत स्वयं जंजीर से"

प्रेषक -
मोनिका दुबे (भट्ट)

जागो बेटों जागो


अब उनकी आँखों की रोशनी कम हो गई है. चेहरे पर झुर्रियों हो गई हैं बालों मे सफेदी ने घर कर लिया है.कमर झुक गई हैं. शरीर कमजोर हो गया है. मगर आज भी काँपते हाथों से अपने पोते- पोती की फरमाइश पर वो हर काम करती है. उन पर जान छिड़कती है. अपने पोपले मुँह से जब हँसती है तो लगता है कि सारी दुनिया मे सबसे खूबसूरत वही हैं.

सच कितना प्यारा रूप है उनका वात्सल्य और प्रेम से भरपूर. अपनी पुरी जिंदगी अपने बच्चों के लिये गुजार दी. पति के स्वर्गवासी होने पर पूरे घर की जिम्मेदारि निभाई.जब भी बच्चों को उनकी जरूरत थी वो हमेशा उनके साथ थी. कभी बच्चों को अकेलापन महसूस नही होने दिया.बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाई. विवाह योग्य होने पर उनकी गृहस्थी बसाई और बच्चों की खुशी देखकर ही खुश होती रहीं.

आज उन्हें बच्चों के सहारे की जरूरत हैं.आज उन आँखों को एक नए चश्मे की जरूरत है.उनकी कमर दर्द करती है पर कोई सहलाने वाला नही होता. उनकों खाना खानें मे तकलीफ होती है क्योकी सारे दाँत गिर गए है पर बेटे को इतनी फुरसत कहाँ कि माँ की बत्तीसी बनवा दे.

उनसे घर के काम अब नही होते पर बेटा विदेश में है घर आने का समय नहीं. वो अकेली हैं बीमार हैं पर अपने बेटे की चिंता उन्हें अपने से ज्यादा है. अपनी धुँधली आँखों से शाम को दरवाजे को तकती है की शायद बेटा आयेगा अपनी माँ कि खबर लेने. हर फोन की घंटी सुन वो भागी चली आती हैं शायद बेटे को माँ की तकलीफ का एहसास है उसने फोन किया होगा.
मगर बेटा मगरूर हैं अपनी दुनिया मे खोया हुआ हैं. उसे माँ की तकलीफें उनका बहाना लगती है उसे वापिस बुलाने का. माँ का दर्द पराया लगता है. माँ के विचार अब आधुनिक बेटे को दकियानूसी लगते हैं. रहन सहन मिडिल क्लास लगता हैं.

जागो बेटों जागो तुम्हारी माँ तुम्हें पुकार रही हैं. अब भी समय हैं देर नही हुई. माँ का सहारा बनो उन्हें धिक्कारो मत. उनके बुढ़ापे में उनका साथ दो.उनकी दवाई का ध्यान रखो. उनका चश्मा बनवा दो. उनके लिये शॉल ले लो उन्हें ठंड लगती है. जरा देखो उनकी चप्पल कितनी घिस गई है एक नई चप्पल ले लो. उनकी बातें सुनने का भी समय निकालो. उनकी तकलीफ समझो. उनके आँसू बहने से रोक लो. उन्हें अकेले नही छोड़ो. वो माँ है हमेशा तुम्हें आशीष हि देंगी. तुम्हारी हर गलती को माफ कर देगी.

ऐसा न हों कि बहुत देर हो जाएँ. उनके जाने के बाद सबसे ज्यादा तुम हि अकेले हो जाओगे.तब बहुत सी बातें होंगी जो तुम्हें उनसे कहनी होंगी पर तब वो तुम्हारे पास नही होंगी. उनके जीते जी उन्हें खुशी दो उनका दिल मत दुखाओ. अब भी समय है जाग जाओ.अपने माँ बाप को बुढ़ापे मे अकेले न छोड़ो.

इसे पढ़कर एक भी बेटे का मन यदि मैं बदल पाई तो समझुंगी मेरा लिखना अपने मकसद मे कामयाब रहा.

प्रेषक
मोनिका दुबे (भट्ट)

अनुत्तरित प्रश्न


अनेक प्रश्न ऐसे है जो कभी दोहराए नही जाते
बहुत उत्तर भी ऐसे हैं जो कभी बतलाए नही जाते

इसी कारण अभावो का सदा स्वागत किया मैंने
कि घर आए मेहमान कभी लौटाए नही जाते

हुआ क्या आँख से आँसू अगर बाहर नही निकले
बहुत से गीत भी ऐसे है जो कभी गाए नही जाते

बनाना चाहती हूँ स्वर्ग तक सोपान सपनों का
मगर चादर से ज्यादा पाँव फैलाए नही जाते

प्रेषक
मोनिका दुबे (भट्ट)

बनिए महफिल की शान


महफिल पर छा जाने की खूबी मंच को जीत लेने की खूबी क्या आपमें है? इसके लिए आपमें मंच पर बोलने की क्षमता होना चाहिए. ज्यादातर लोग स्टेज पर बोलने से घबराते हैं. ये खूबी हर किसी मे नही होती. लेकिन यदि ये खूबी आपमें हैं तो आप पूरी महफिल मे अपना रंग जमा सकते हैं. अच्छा वक्ता बनने के लिए सबसे पहले जरूरी है अच्छा श्रोता होना. निम्न कुछ बातें हैं जिन पर अमल कर आप भी बन सकते हैं मंजे हुए वक्ता :-

1. सबसे पहले अपने सामान्य ज्ञान यानि जनरल नॉलेज को बढ़ाएँ. इसके लिए आप न्यूज पेपर पढ़े,न्युज चैनल देखें व अपने आँख व कान खुले रखे. आपको पता होना चाहिए कि देश व दुनिया मे क्या घटित हो रहा है.


2. दूसरा आपकी भाषा पर अच्छी पकड़ होना आवश्यक है. आपका उच्चारण साफ व सही होना चाहिए.साथ ही अच्छे शब्दों का प्रयोग करना भी प्रभावकारी होता हैं.

3. इसके अलावा आपको जिस भी विषय पर बोलना है उसकी पूर्ण जानकारी होना चाहिए. आपको उस विषय के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पहलुओं की जानकारी होना भी आवश्यक है ताकि आप हर तरह से बोल पाने मे सक्षम हों.


4. आपका बोलने का ढंग व आपके हाव भाव प्रभाव शाली होना चाहिए. क्योकी यदि आपका बोलने का ढंग असरकारक नही हैं तो आपकी जानकारी कितनी भी हो आप सही तरीके से अपनी बात नही पहुँचा पायेंगे.



5. जब भी आपको मंच पर बोलना हो घर पर आईने के सामने खड़े होकर बोलने का अभ्यास करें. इससे आपको आपकी कमजोरियों का पता चलेगा व आत्माविश्वास भी आएगा.


6. विषय को रटना नही चाहिए. ऐसा करने से आपकी प्रस्तुति खराब हो सकती हैं. हमेशा विषय को समझकर बोले.


7. यदि आपको बोलने के लिए समय सीमा दी गई है तो उसका विशेष ध्यान रखें. क्योकी समय सीमा मे बोलने के लिए विषय को क्रम से रखना आवश्यक है. याद रखे सबसे महत्वपूर्ण बात पहले रखी जाएँ.


8. आपका पहनावा भी ठीक होना चाहिए. बहुत भड़काऊ वस्त्र पहनने से बचना चाहिए. साधारण वस्त्र पहने जो समय व परिस्थितियों के अनुरूप हो.


9. बोलते समय दर्शकों की ओर देखें नजरें नीची करके या घबराकर कही गई बात का असर नही होता.

10. कुल मिलकर आपमें भरपूर आत्मविश्वास होना चाहिए.


11. तो इन बातों पर अमल कीजिए और बन जाइए महफिल की शान. आप भी सबके चहेते होंगे और आपकी बोली के लोग कायल होंगे. यकीन नहीं तो आजमा कर देख लीजिए.मेरा विश्वास है कि आपको निराशा हाथ नही लगेंगी.

प्रेषक
मोनिका दुबे( भट्ट)