बुधवार, 20 जुलाई 2011

बहन का खत भाई के लिए







हर साल की तरह इस बार भी जब भाई ने मुझसे पूछा की दीदी तुम्हे राखी पर क्या चाहिए तो आँखे ये सोच कर नम हो आई की मे कितनी खुशकिसमत हू जो मुझे एक समझदार और ज़िम्मेदार भाई मिला हे जो मुझसे उम्र मे बहुत छोटा हे लेकिन अपनी दीदी की हर छोटी बड़ी बातो का ख़याल रखता हे और मान भी देता हे. साथ ही मन ये भी सोचने लगा की आज के समय मे एसा बेटा, भाई सबको नही मिलता. आजकल के भाई कहाँ जिंदगी भर अपने भाई बहनो की ज़िम्मेदारी निभा पाते हे.

मैने अपने स्कूल मे कितनी ही लड़कियो को राखी के दिन रोते हुए देखा था क्योकि उनके भाई नही थे और वो किसे राखी बाँधे ये सोचकर उदास होती थी. तब मे इस बात पर बहुत खुश होती थी की भगवान ने मुझे भाई दिया हे जिसकी कलाई पर मे राखी वाले दिन राखी बाँध सकती हू और मनचाहा उपहार भी पा सकती हूँ. तब बालमान भाई बहन के रिश्ते की संजीदगी को नही समझ पाता था लेकिन बड़े होने पर ये बात समझ मे आई की केवल भाई होना खुशी की बात नही बल्कि एक ज़िम्मेदार, समझदार संस्कार को मान देने वाला और नींव से जुड़ा रहने वाला भाई होना खुशी की बात होता हे. जो अपनी बहन और भाई के साथ साथ माता-पिता का ख़याल भी रख सके.

सोचा क्यो न इस बार राखी पर भाई से कुछ अनोखा माँगा जाए और सिर्फ़ अपनी तरफ से नही बल्कि दुनिया की हर बहन की तरफ से दुनिया के हर भाई के लिए.

तो भाई सुनो तुम्हारी बहन तुमसे क्या चाहती हे.

सबसे पहले एक बहन की चाह हे की तुम एक अच्छे सच्चे और ईमानदार इंसान बनो बहुत उन्नति करो लेकिन अपनी नींव को कभी नही भूलो.

बहन को मान दो लेकिन उसके पहले अपने माता पिता को मान दो उनका दिल कभी भी न दुखाओ और जब माता पिता के चेहरे पर झुर्रिया आने लगे तो उनका हाथ मजबूती से थाम लो ताकि उनके कदम लड़खड़ाए ना.

जब पिताजी व्रद्धावस्था मे पहुँच जाए तो हो सकता हे की वो थोड़े चिड़चिड़े स्वभाव के हो जाए क्योकि कहते की बुडापे मे स्वभाव थोड़ा चिड़चिड़ा हो जाता हे तब उनके इस स्वभाव के कारण कहीं उनसे मुँह नही फेर लेना याद रखना की इन्ही माँ - बाप ने तुम्हारे बचपन मे तुम्हारे गुस्से और ज़िद को सहा हे वो भी हँसते हँसते.

भैया माँ बहुत संकोची स्वभाव की हे हमेशा उनकी प्राथमिकता मे सबसे पहले उनके बच्चे फिर उनके पति और बाद मे वो स्वयं होती हे. इसलिए उनकी ज़रूरतो का हमेशा ख़याल रखना. वो माँ हे, तुम्हारी माँ, इसलिए उनका मन दुखी न करना. तुम जिंदगी मे कितने भी व्यस्त हो जाओ लेकिन उनके लिए कुछ समय निकाल लेना . हो सकता हे करियर के लिए या जॉब के लिए तुम्हे उनसे दूर रहना पड़े फिर भी कम से कम फ़ोन पर उनके हाल चाल ज़रूर पूछ लेना. जैसे तुम होस्टल मे थे तब माँ केसे तुमसे फ़ोन पर पूछा करती थी न की बेटा खाना खाया की नहीं पेसे की ज़रूरत तो नही वरना पापा से कह कर और पेसे डलवा दू? वेसे ही अब तुम्हे उनका ख़याल रखना हे.

माता पिता के बाद बारी आती हे बड़े भाई भाभी और तुम्हारी पत्नी और बच्चो की जो की बहुत महत्वपूर्ण हे. एसा न हो की तुम परिवार की ज़िम्मेदारिया निभाते निभाते अपनी पत्नी और बच्चो के प्रति उदासीन हो जाओ वो तुम्हारी ज़िम्मेदारी हे और तुम्हारी प्राथमिकता भी इसलिए उन्हे भी खुश रखना तुम्हारा कर्तव्य हे. बड़े भाई भाभी को मान देना और छोटो के लिए एक आदर्श भाई साबित होना भी तुम्हारी ज़िम्मेदारी का ही हिस्सा हे.

इन सबके बाद बारी आती हे हमारे समाज और देश की तुम जब एक अच्छे और सच्चे इंसान बनोगे अपने परिवार के प्रति अपने कर्तव्यो की पूर्ति करोगे तो ज़िम्मेदारिया यही ख़त्म नही हो जाती हमारा परिवार, समाज और देश का ही तो हिस्सा हे सो उसके प्रति कर्तव्यो से मुकर नही सकते.

समाज मे अगर किसी बुराई को जन्म लेते देखो तो उसे वही ख़त्म करने का प्रयास करो. सच्चाई का साथ दो चाहे तुम उसमे अकेले ही क्यो न हो. अपने से छोटे तबके के लोगो की मदद करो उनको घ्रणा से न देखो न ही खुद के बड़े होने का अभिमान करो.

देश के प्रति समर्पित रहो देश से प्यार करो. भैया आधुनिक हो जाने का मतलब यह नही की देश के बारे मे सोचना या देश भक्ति की बाते करना व्यर्थ हे. बल्कि तुम्हे अगर कोई मौका मिले देश सेवा का तो पीछे नही हटना.

देश सेवा का यह मतलब नहीं की सीधे बंदूक लेकर सीमा पर खड़े हो जाओ बल्कि और भी तरीके हे देश की सेवा के तुम किसी ज़रूरतमंद को रक्त दान कर सकते हो. जो बच्चे शिक्षा प्राप्त नहीं कर पा रहे उन्हे तुम पढ़ने मे मदद कर सकते हो, भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाओ और इसे जड़ से ख़त्म करने मे मदद करो. देश से अपने घर की तरह ही प्रेम करो इसे साफ सुथरा रखो, औरो को भी प्रेरणा दो. बस यह भावना अगर तुम्हारी रही तो तुम एक सच्चे नागरिक बन पाओगे और तुम्हारी बहन यही चाहती हे की तुम अच्छे भाई की तरह एक अच्छा नागरिक भी बनो.

इन सबके बाद बारी आती हे मेरी यानी तुम्हारी बहन की तो भैया मुझे ज़्यादा कुछ नही चाहिए बस एक वचन की तुम ये सारी बाते निभाओगे और अपनी बहन का सर हमेशा गर्व से उँचा रखोगे. तुम कही भी रहो देश या विदेश अपनी मिट्टी को कभी नही भूलो और हम सब से खूब सारा स्नेह पाते रहो. तुम्हारी बहन हमेशा तुम्हारे साथ हे. तुम्हारी तरक्की के लिए ईश्वर से प्रार्थना करती हे और तुमसे राखी के बदले बस यही चाहती हे की तुम इस वचन को निभाओ .

तो भैया अपनी बहन को इस बार राखी पर ये उपहार दोगे ना?

प्रेषक
मोनिका भट्ट (दुबे)

12 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

bahut achchi soch se bhara khat hai ye monika ji. thodi asahmati ki aadarsh ke liye theek hai ki apni patni bachcho se pahle pita mata ka dhyan rakhne ko kaha haalanki ye practical nahi hai par bade bhai bhabhi ka khayal apni patni bachcho se pahle rakhna tark se pare hai.

Bhattmonika@gmail.com ने कहा…

शर्मा जी आपके विचारो का सम्मान करती हूँ. मैने बड़े भाई भाभी के साथ ही अपनी पत्नी और बच्चो का भी ख़याल रखने की बात कहीं हे उनसे पहले नही और मैने लिखा हे की कही माता पिता का ख़याल रखने मे पत्नी और बच्चो के प्रति उदासीन नही हो जाना यहा पर मेरा यही मतलब हे की पत्नी और बच्चो के प्रति ज़िम्मेदारी प्राथमिकता से निभानी हे. में ये अच्छी तरह से समझती हूँ की पत्नी और बच्चे पहली प्राथमिकता होती हें लेकिन एक भाई से एक बहन उम्मीद करती हे की वो माता पिता का अच्छी तरह से ख़याल रखे उनकी सेवा करे इसका यह मतलब कदापि नही की वो पत्नी बच्चो की तरफ लापरवाह हो जाए. माफ़ कीजिएगा यदि मेने कुछ ग़लत लिखा हो तो.

नुक्‍कड़ ने कहा…

मोनिका जी आपने इसमें कुछ कहने की गुंजायश तो छोड़ी ही नहीं है। आपने सभी को इसमें संजो लिया है। भाई ने पूछ कर जिम्‍मेदारी का परिचय दिया और आपने तो बतला कर, स्‍वार्थ से दूर रहकर, सिर्फ अपना हित न सोचकर, बाजी मार ली। भाई बहन के रिश्‍तों को ऐसी पवित्र भावनाओं और कामनाओं की दरकार होती है।

और हां आपने नवभारत टाइम्‍स ई पेपर की साइट पर अपना ब्‍लॉग बनाया या नहीं, अगर नही बनाया तो तुरंत बना लें और नवभारत टाइम्‍स के एग्रीगेटर से अपने ब्‍लॉग को तुरंत जोड़ लें। कोई कठिनाई हो तो www.nukkadh.com है, वहां पर एक पोस्‍ट इस साइट तक पहुंचने का रास्‍ता बतलाती है।

Tapan Dubey ने कहा…

didi aapka ye lekh pad kar aankh nam ho gai,me wachan deta hu ki me har sambhav koshish karuga aap ke is wachan ko nibhau.... bahut achcha likha he aise hi likhte raho...

Bhattmonika@gmail.com ने कहा…

भाई मुझे तुम पर पूरा भरोसा हे की तुम अपनी दीदी का सर हमेशा गर्व से उँचा रखोगे. ईश्वर तुम्हारी सारी मनोकामना पूरी करे.

Kunwar Kusumesh ने कहा…

अच्छी कामना/अच्छे विचार.

vidhya ने कहा…

अच्छी कामना/अच्छे विचार
आ गया राखी

अन्तर सोहिल ने कहा…

मैं वचन देता हूँ अपनी सभी बहनों को यही उपहार दूंगा, आपको भी

प्रणाम

ashish ने कहा…

कर्तव्य और भावनाओ का ज्वार कुलांचे मारने लगा पढ़कर . अग्रजा हो तो ऐसी . आभार .

मनोज कुमार ने कहा…

कमाल है!
हर बहन तुम्हारी तरह हो!

Manish ने कहा…

कुछ ऐसा ही मेरी दीदी का भी विचार है. बस फर्क यह है कि वह मुझसे राखी पर गिफ्ट के तौर पर यह नही कहा, बल्कि हर रोज कान ऐठते हुए..
वह सीख भी इतनी ही प्यारी है जितनी आपने दी.. :)

Rakesh Kumar ने कहा…

आपने अपने सुन्दर भावों की अनुपम प्रस्तुति की है.
भाई के प्रति आपके भाव ओर आकांक्षा सराहनीय हैं.
शानदार अभिव्यक्ति के लिए आभार.

मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है.