सोमवार, 9 सितंबर 2013

क्या तुम आज स्कूल आओगे?




अब ये नही होगा.......... कल मुझसे मेरे छोटे भाई ने कहा की दीदी अब तुझसे ये कोई नही कभी कहेगा की आज स्कूल क्यो नही आई या क्या तुम आज स्कूल आओगी? बात बिल्कुल साधारण सी थी पर मे सारा दिन सोचती रही की ये बात कितनी सच हे . बचपन के साथ साथ ये सारे पल भी तो बीत गये जब सारी सहेलिया साथ स्कूल जाती और हर दिन एक दूसरे से पूछती थी की क्या कल स्कूल आओगी?



हमारी वो दुनिया ही निराली थी. लूका छुपी का खेल खेलने के लिए हर शाम भगवान जी से बोलना की प्लीज़ भगवान जी लाइट चली जाए ताकी मम्मी हमे बाहर खेलने की इजाज़त दे दे क्योकि तब घर पर इनवेर्टर की व्यवस्था नही थी सो मम्मी के पास कोई रास्ता नही होता था. मम्मी के हाथ के आलू के पराठे और नींबू का आचार जो मुझे कभी खाने नही मिलता था सब मेरी सहेलियो के नाम कुर्बान और होस्टल मे मम्मी के हाथ के बेसन के लड्डू मगर यहा भी रूम मेट के साथ शेयर करना मजबूरी थी. स्कूल जाने और आने के समय अगर बारिश हो गई तो १५ मिनट का रास्ता भी १ घंटे मे तय होता था .



घंटो सहेलियो के साथ बैठकर गप्पे मारना और भविष्य की योजनाए बनाना. सहेली का जन्मदिन होने पर उससे हलवे का केक कटवाना ( उस समय केक इस तरह आसानी से नही मिल पता था) . मम्मी पापा का प्यार और फटकार . सुबह देर से उठने पर पापा का लंबा लेक्चर और उनका समाचार पत्र पढ़ते हुए चश्मे से तिरछी निगाहो से गुस्से से देखना और कुछ देर बाद मुस्कुरा देना. आस पास के कंपनी बाग मे हमारी पिकनिक और वहा जब मेरी सहेली का टिफिन एक कुत्ता खा गया तो हम सब हंस हंस कर ओंदे हो गये थे.



एसी कितनी ही मीठी यादे हे जिनका यदि सिलसिले वार ज़िक्र करने लगे तो कभी ख़त्म ही न हो. सच कितनी मधुर यादे हे जो जिंदगी मे जब भी हम हौसला हारे या जीवन से थकने लगे तो हमारा हौसला बढ़ाती हे .



यही तो जिंदगी हे खट्टी और मीठी . आज भाई की एक बात ने मुझे मेरे बचपन की सेर करा दी और मन फिर से पहुच गया उसी मासूमियत और भोली नटखट दुनिया मे जहा सब कुछ अच्छा ही अच्छा था बुरा कुछ भी नही .

और मे खुद को तरो ताज़ा महसूस करने लगी तो सोचा क्यो ना आपको भी इसी ताज़गी का अहसास कराया जाए तो जनाब बचपन की दुनिया की खुश्बू ने आपको भी महका ही दिया आख़िर?

प्रेषक

मोनिका भट्ट (दुबे)

शनिवार, 17 अगस्त 2013

कन्या भोज

चंपा को आज काम पर जल्दी निकलना था नवरात्रि का अंतिम दिन था और मालकिन ने नौ कन्याओ को भोजन के लिए आमंत्रित किया था. चंपा घर से निकलने लगी तो ६ वर्षीय मीठी भी साथ आने की ज़िद करने लगी चंपा ने उसे भी साथ लिया और काम पर चल दी. मालकिन के घर पहुँच कर चंपा जल्दी जल्दी मालकिन का हाथ बँटाने लगी मीठी चुपचाप कोने में बैठकर अपनी माँ को काम करता देख रहीं थी. तरह तरह के व्यंजन की खुश्बू उसे ललचा रही थी. खीर उसे बहुत पसंद थी उससे रहा नही गया और उसने चंपा से खीर खाने की ज़िद की चंपा ने उसे समझाया की ये तुम्हारे लिए नहीं हैं इसे तुम नहीं खा सकती लेकिन मीठी ज़ोर ज़ोर से रोने लगी हार कर चंपा को मीठी को चुप कराने के लिए थोड़ी सी खीर कटोरी मे देना पड़ी. मीठी पहला घूँट खीर पीती तभी मालकिन किचन में आ गई और यह देखकर की ब्राह्मण कन्याओ को खिलाने की खीर चंपा मीठी को खिला रहीं है आग बबुला हो उठी कहने लगी- मैनें नौ दिन अन्न जल का त्याग रख माता रानी का व्रत रखा उन्हे प्रसन्न करने के लिए और आज जब मुझे मेरे व्रत का फल मिलने वाला हैं पुण्य मिलने वाला है सब कुछ ख़त्म करना चाहती हों. चलो निकलो दोनों यहाँ से और अब काम पर नहीं आना. चंपा रोटी हुई मीठी को ले वहाँ से चुपचाप चली आई. उसके जाने के बाद मालकिन ने नौ ब्राह्मण कन्याओं को भोजन करवाया और देवी से प्रार्थना की- हें देवी भूल चूक माफ़ कर मुझ पर प्रसन्न होना. मेरी मनोकामना पूर्ण करना.


वहीं मीठी का बालमन सोच रहा था कि क्या मेरे एक कटोरी खीर खा लेने से माता रानी नाराज़ हों जाती.



प्रेषक

मोनिका भट्ट (दुबे)