शनिवार, 17 अगस्त 2013

कन्या भोज

चंपा को आज काम पर जल्दी निकलना था नवरात्रि का अंतिम दिन था और मालकिन ने नौ कन्याओ को भोजन के लिए आमंत्रित किया था. चंपा घर से निकलने लगी तो ६ वर्षीय मीठी भी साथ आने की ज़िद करने लगी चंपा ने उसे भी साथ लिया और काम पर चल दी. मालकिन के घर पहुँच कर चंपा जल्दी जल्दी मालकिन का हाथ बँटाने लगी मीठी चुपचाप कोने में बैठकर अपनी माँ को काम करता देख रहीं थी. तरह तरह के व्यंजन की खुश्बू उसे ललचा रही थी. खीर उसे बहुत पसंद थी उससे रहा नही गया और उसने चंपा से खीर खाने की ज़िद की चंपा ने उसे समझाया की ये तुम्हारे लिए नहीं हैं इसे तुम नहीं खा सकती लेकिन मीठी ज़ोर ज़ोर से रोने लगी हार कर चंपा को मीठी को चुप कराने के लिए थोड़ी सी खीर कटोरी मे देना पड़ी. मीठी पहला घूँट खीर पीती तभी मालकिन किचन में आ गई और यह देखकर की ब्राह्मण कन्याओ को खिलाने की खीर चंपा मीठी को खिला रहीं है आग बबुला हो उठी कहने लगी- मैनें नौ दिन अन्न जल का त्याग रख माता रानी का व्रत रखा उन्हे प्रसन्न करने के लिए और आज जब मुझे मेरे व्रत का फल मिलने वाला हैं पुण्य मिलने वाला है सब कुछ ख़त्म करना चाहती हों. चलो निकलो दोनों यहाँ से और अब काम पर नहीं आना. चंपा रोटी हुई मीठी को ले वहाँ से चुपचाप चली आई. उसके जाने के बाद मालकिन ने नौ ब्राह्मण कन्याओं को भोजन करवाया और देवी से प्रार्थना की- हें देवी भूल चूक माफ़ कर मुझ पर प्रसन्न होना. मेरी मनोकामना पूर्ण करना.


वहीं मीठी का बालमन सोच रहा था कि क्या मेरे एक कटोरी खीर खा लेने से माता रानी नाराज़ हों जाती.



प्रेषक

मोनिका भट्ट (दुबे)