शुक्रवार, 11 मार्च 2016

मैं एक औरत हूँ

मैं एक औरत हूँ इतिहास में जिसे कभी पाँच पतियों को सौंपा गया तो कभी जुएँ में हारी गयी. कभी बहन हूँ कभी माँ हूँ कभी बेटी तो कभी पत्नी.हर रूप में हर किरदार में मुझे छला जाता है कभी कोख में ही खत्म कर दिया जाता है तो कभी बाहरी दुनिया में छोटी सी उमर में ही किसी अपने के द्वारा रौंदा जाता है. कभी बड़े भाई की तरक्की के लिए बलिदान माँगा जाता है. कभी घर की गरीबी मजबूरी बनती हैं. कभी माँ के रूप में बच्चो से छली जाती हूँ कभी पत्नी के किरदार में पति की मार खाती हूँ. मुझे आगे बढ़ने का कोई हक नही मुझे शिक्षा नही दी जाती जो देते भी हैं शिक्षा तो समाज आगे नही निकलने देता
नौकरी काबिलियत पर मिले तो भी फब्ती कसी जाती है की औरत है इसलिए मिल गई और उसी नौकरी मे जानबूझकर कभी आगे बढ़ाने का प्रलोभन देकर तो कभी पीछे धकेलने के लिए औरत होने का फ़ायदा उठाया जाता है मेरी देह को गंदी दृष्टि से देखा जाता है मेरी मर्ज़ी के बिना मुझे छुआ जाता है. कभी बस मे कभी ट्रेन मे कभी रास्ते मे मुझपर गिद्ध दृष्टि डाली जाती है मुझे गंदी गंदी गालियो मे शामिल किया जाता है. मुझे अवसर कहा जाता है जो मिले उसकी जो लपक ले उसकी. कभी ससुराल मे दहेज ना लाने पर जलाया जाता है तो कभी पढ़े लिखे पति के पैरो की जूती बनाया जाता है.
में आत्मविश्वास से खड़ी होती हू तो मुझे गिराने की कोशिश की जाती है विवाह ना करू तो मेरे चरित्र पर उंगली उठाई जाती है और करू तो मेरा अस्तित्व मिटाने की कोशिश की जाती है. मेरे कदम घर से बाहर निकले तो मेरे उत्तरदायित्व को लेकर सवाल खड़े किए जाते है. चारदीवारी  मे केद रहू तो मेरी पहचान खो जाती है. मे एक वस्तु की तरह हू जब मर्ज़ी होगी तब मुझसे मन बहलाया जाता है मुझ पर हॅसा जाता है जोक्स बनाए जाते है मेरी सोच मेरे पहनावे पर प्रश्न चिन्ह लगाया जाता है. मुझे खरीदा जाता है बेचा जाता है और खुद की मजबूरी से बिकु तो गुमनाम बस्ती मे धकेल दिया जाता है.
कोई भी रिश्ते मे बँधी रहू पर एक औरत हू ........ वो औरत जिसके बिना सृष्टि की कल्पना नही की जा सकती जो देवी दुर्गा है तो चन्ड़ी भी जो अपना सम्मान अपनी मर्यादा जानती है जो हर क्षेत्र मे अपनी उपलब्धि दर्ज करा रही है वही औरत आज भी अपनी पहचान अपनी मर्यादा अपना सम्मान बचाने के लिए समझौते करती है आज भी अपने सपनो को तोड़ती है अपने पँखो को कटा पाती है लाख कहे जाने के बावजूद की हमने विकास कर लिया औरतो की स्थिति बहुत अच्छी है आज... नही... आज भी औरत बहुत पीछे है औरत को औरत होने की बहुत बड़ी सज़ा दी जाती है......समाज से बस एक सवाल आख़िर कब तक और क्यो??????

प्रेषक
मोनिका दुबे भट्ट

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